Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १७५ प्रकार हे गौतम ! कर्मरूप ईंधन से रोहत होने से कर्म रहित होती है ?
गौतम - भगवन् ! पूर्व प्रयोग से कर्मरहित जीव की गति किस प्रकार होती है।
भगवान-गौतम ! जिस प्रकार धनुष से छूटा हुआ बाण किसी भी प्रकार की रुकावट के बिना लक्ष्याभिमुख जाता है, इसी प्रकार हे गौतम ! पूर्व प्रयोग से कर्मरहित जीव की गति होती है।
- भग. शतक ७, उ. १, सूत्र १०-१५ आरम्भी और अनारम्भी
संसार परिभ्रमण का हेतु आरंभ माना गया है। जितने आरंभ हैं सब दोषयुक्त हैं । मुक्ति पूर्ण निर्दोष को प्राप्त होती है। गीता में कहा है“सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृता" अर्थात् जितने भी आरंभ हैं सब दोष से व्याप्त हैं। जैसे अग्नि के बिना धूम नहीं होता उसी प्रकार दोष के बिना आरंभ नहीं होता । आनवद्वार में प्रवृत्ति करना आरंभ है।
गौतम प्रश्न करते हैं- भगवन् ! क्या जीव आत्मारंभी हैं, परारंभी हैं या तदुभयारंभी हैं ?
भगवान फरमाते हैं - गौतम ! कितने जीव आत्मारंभी हैं, कितने परारंभी हैं और कितने जीव तदुभयारंभी हैं व कितने ही जीव अनारंभी हैं।
शंका- यदि आत्मा अरूपी है तो आरंभी कैसे हो सकता है ? अगर आत्मा अरूपी होते हुए भी आरंभी है तो सभी आरंभी होने चाहिये । कोई आरंभी और कोई अनारंभी यह भेद कैसे ?
समाधान - जीव दो प्रकार के हैं-संसार समापन्नक (संसारी) और असंसारसमापन्नक (असंसारी ) । असंसारी अर्थात् सिद्ध भगवान् अनारम्भी हैं। संसारी जीव दो प्रकार हैं- संयत और असंयत । संयत भी प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत के भेद से दो तरह के हैं। अप्रमत्तसंयत अनारंभी हैं, और प्रमत्तसंयत शुभयोग की अपेक्षा आरंभी और अशुभयोग की अपेक्षा अनारंभी हैं।
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- भग. श. १, उ. १, सूत्र ४७-४८
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