Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन
गौतम - भगवन् ! धर्मास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गंध, कितने रस और कितने स्पर्श हैं ?
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भगवान गौतम ! धर्मास्तिकाय में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श नहीं है, अर्थात् धर्मास्तिकाय अरूपी है, अजीव है, शाश्वत है, अवस्थित है, लोक व्याप्त द्रव्य है।
संक्षेप में धर्मास्तिकाय पाँच प्रकार का है - द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण से । द्रव्य की अपेक्षा धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है। क्षेत्र से - लोक प्रमाण है। काल से अनादि काल से है और अनन्त काल तक रहेगा । भाव से अवर्ण, अगंध, अरस और अस्पर्शी है । गुण की अपेक्षा गति सहायक है अर्थात् जीवों और पुद्गलों की गति में सहायक बनता है ।
जिस तरह धर्मास्तिकाय कहा ऐसे ही अधर्मास्तिकाय भी कहना चाहिये । अन्तर इतना है कि अधर्मास्तिकाय गुण से स्थिति गुण वाला है। आकाशास्तिकाय में क्षेत्र और गुण की अपेक्षा से विशेषता है। क्षेत्र से लोकालोक प्रमाण और गुण से अवगाहना गुण वाला है।
गौतम - भगवन् ! जीवास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गंध कितने रस और कितने स्पर्श हैं ?
भगवान - संक्षेप में जीवास्तिकाय के पाँच भेद हैं। द्रव्य से जीवास्तिकाय अनन्त जीवद्रव्य है। क्षेत्र से प्रदेशों की अपेक्षा लोक प्रमाण है। काल से अनादि अनन्त-नित्य है। भाव से अवर्ण, अगंध, अरस और अस्पर्श है। गुण से उपयोग गुण वाला है।
गौतम-भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गंध, कितने रस और कितने स्पर्श हैं ?
भगवान - गौतम ! पुद्गलास्तिकाय में पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गंध, और आठ स्पर्श है। वह रूपी है, अजीव है, शाश्वत है व अवस्थित है। संक्षेप में पाँच भेद हैं- द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण ।
द्रव्य से पुद्गलास्तिकाय अनन्त द्रव्यरूप है।
क्षेत्र से लोक प्रमाण है, अर्थात् समस्त लोकव्यापी है। काल से अनादि अनन्त अर्थात् नित्य है ।
भाव से वह वर्ण, गंध, रस और स्पर्शवान् है ।
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