Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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१८२ भगवती सूत्र : एक परिशीलन ___ गणधर गौतम ने भगवान से पूछा-भगवन् ! आकाश तत्त्व से जीवों और अजीवों को क्या लाभ होता है ?
भगवान ने कहा-गौतम ! यदि आकाश द्रव्य नहीं होता तो जीव कहाँ पर रहते ? धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय कहाँ पर व्याप्त होते ? काल कहाँ पर बरतता ? पुद्गल कहाँ पर अपने रंग बिरंगे दृश्य बताता ? यह विश्व निराधार हो जाता ?१०
द्रव्य की दृष्टि से आकाश अनन्त प्रदेशात्मक द्रव्य है। क्षेत्र की दृष्टि से आकाश अनन्त विस्तार वाला है-लोक अलोकमय है। काल की दृष्टि से आकाश अनादि-अनन्त है। भाव की दृष्टि से आकाश अमूर्त है।
परमाणु पुद्गल गौतम-भगवन् ! क्या परमाणु पुद्गल तलवार की धार या क्षुर-धार (उस्तरे की धार) पर रह सकता है ?
भगवान-हाँ गौतम ! रह सकता है।
गौतम-भगवन् ! उस धार पर रहा हुआ परमाणु पुद्गल क्या छिन्न-भिन्न होता है ? ___भगवान गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। परमाणु पुद्गल पर शस्त्र का आक्रमण नहीं हो सकता। यदि ऐसा हो जाय तो उसका परमाणुपना ही नष्ट हो जाय। इसी प्रकार असंख्य प्रदेशी स्कन्ध तक समझ लेना चाहिये।
जो अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तथाविध बादर परिणाम वाला होता है वह छेद-भेद को प्राप्त होता है और जो सूक्ष्म परिणाम वाला है वह छिन्न-भिन्न नहीं होता।
-भग. शतक ५, उ. ७, सूत्र ५-८ परमाणु शाश्वत या अशाश्वत ? गौतम ने भगवान से प्रश्न किया-भंते ! परमाणु शाश्वत है या अशाश्वत ?
महावीर-देवानुप्रिय ! परमाणु शाश्वत भी है और अशाश्वत भी। गौतम-भन्ते ! ऐसा कैसे ?
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