Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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१६६ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
प्रथम गुणस्थान से लेकर दसवें गुणस्थान तक के अधिकारी जीव पुण्य और पाप दोनों का बंध करते हैं और ग्यारहवें से तेरहवें गुणस्थान तक के जीव केवल पुण्य का बंध करते हैं पाप का नहीं। ___ -भगवती ६/३ लोक का विस्तार
गौतम-भगवन् ! लोक कितना बड़ा कहा है ?
भगवान गौतम ! जम्बूद्वीप नामक यह द्वीप समस्त द्वीप समुद्रों के मध्य में है। इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस (३,१६,२२७) योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। कोई महर्द्धिक, महासुख सम्पन्न छह देव मेरुपर्वत की चूलिका के चारों तरफ खड़े रहें और नीचे चार दिशाकुमारिकाएं हाथों में बलिपिण्ड लिए चार दिशाओं में जम्बूद्वीप की जगती पर खड़ी हुई हैं जिनकी पीठ मेरु की ओर है एवं मुख दिशाओं की ओर। ___-"उक्त चारों दिशाकुमारिकाएं इधर अपने बलिपिंडों को अपनी-अपनी दिशाओं में एक साथ फैकती हैं और उधर उन मेरु शिखरस्थ छह देवताओं में से एक देवता तत्काल दौड़ लगाकर चारों ही बलिपिंडों को भूमि पर गिरने से पहले ही पकड़ लेता है। इस प्रकार की शीघ्र गति वाले छहों देवता हैं एक नहीं।" ___ -"उपर्युक्त शीघ्र गति वाले देव एक दिन लोक का अन्त मालूम करने के लिये क्रमशः छहों दिशाओं में चल पड़े। अपनी पूरी गति से एक पल का भी विश्राम लिए बिना दिन-रात चलते रहे, उड़ते रहे।" __-"जिस क्षण देवता मेरु शिखर से उड़े, कल्पना करो उसी क्षण किसी गृहस्थ के यहां एक हजार वर्ष की आयु वाला पुत्र उत्पन्न हुआ। कुछ वर्ष पश्चात् माता-पिता परलोकवासी हुए। पुत्र बड़ा हुआ और उसका विवाह हो गया। वृद्धावस्था में उसके भी पुत्र हुआ। और बूढ़ा हजार वर्ष की आयु पूरी कर चला बसा।" ___ गौतम स्वामी ने बीच में ही तर्क किया-“भन्ते ! वे देवता, जो शीघ्र गति से लोक का अन्त लेने के लिये निरन्तर दौड़ लगा रहे थे, हजार वर्ष में क्या लोक के छोर तक पहुंच गए?
भगवान ने कहा-गौतम ! अभी कहां पहुंचे हैं ?
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