Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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१६४ भगवती सूत्र : एक परिशीलन वायु सूक्ष्म है, फिर भी मनुष्य का भार वहन करती है। जैसे इसमें संदेह को अवकाश नहीं, उसी प्रकार आठ प्रकार की लोक स्थिति में भी संदेह करने का कोई कारण नहीं।
-भग. शतक १, उ. ६, सूत्र २२४-२२५ लोक का संस्थान
गौतम-भगवन् ! लोक का संस्थान (आकार) किस प्रकार का कहा गया
___ भगवान गौतम ! लोक की आकृति सुप्रतिष्ठकः शराव (सकोरे) के समान है। वह नीचे विस्तीर्ण यावत् ऊपर ऊर्ध्व मृदंग के आकार संस्थित है। इस नीचे विस्तीर्ण यावत् ऊपर ऊर्ध्व मृदंग के आकार वाले लोक में, उत्पन्न केवलज्ञान, दर्शन को धारण करने वाले अरिहन्त, जिन, केवली जीवों को भी जानते-देखते हैं तथा अजीवों को भी जानते और देखते हैं।
लोक का विस्तार मूल में सात रज्जु५ परिमाण है।
ऊपर क्रम से घटते हुए सात रज्जु की ऊँचाई पर एक रज्जु विस्तार है। फिर क्रम से बढ़ते हुए साढ़े नौ से साढ़े दस रज्जु की ऊंचाई पर विस्तार पांच रज्जू है। फिर क्रम से घटते हुए मूल से चौदह राज की ऊंचाई पर एक रज्जु का विस्तार है। मूल से लेकर ऊपर तक की ऊंचाई चौदह रज्ज है। ___ लोक के तीन भेद हैं। उनमें से अधोलोक का आकार उलटे सकोरे जैसा है। तिर्यक् लोक का आकार झालर या पूर्ण चन्द्रमा जैसा है। ऊर्ध्वलोक का आकार ऊर्ध्व मृदंग जैसा है।
इस लोक में उत्पन्न ज्ञान-दर्शन धारक अरिहन्त, जिन, केवली भगवन्त सिद्ध होते हैं यावत् सभी दुःखों का अंत करते हैं।
-भग. शतक ७, उ. १, सूत्र ४ लोक कितने प्रकार का है?
गौतम-भगवन् ! लोक कितने प्रकार का कहा गया है ? भगवान-गौतम ! लोक चार प्रकार का कहा गया हैद्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक। गौतम-भगवन् ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ?
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