Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १७१ दर्शन-आत्मा-सामान्य अवबोध रूप दर्शन से विशिष्ट आत्मा दर्शन आत्मा है।
चारित्र-आत्मा-सम्यक् प्रवृत्ति और निवृत्तिवान् आत्मा चारित्र आत्मा है। चारित्रात्मा विरत जीवों के होती है।
वीर्य-आत्मा-उत्थानादि रूप कारणों से युक्त वीर्य विशिष्ट आत्मा वीर्यात्मा है। सिद्ध जीवों को छोड़कर सर्व संसारी जीवों के सकरण वीर्य-आत्मा होती है।
-भग. शतक १२, उ. १0, सूत्र १ हाथी और कुन्थुआ का जीव समान गौतम-भगवन् ! क्या हाथी और कुन्थुआ दोनों का जीव समान है ?
भगवान- हाँ गौतम ! हाथी और कुन्थुआ का जीव समान है। जैसे-एक दीपक का प्रकाश किसी एक कमरे में फैला हुआ है, यदि उसको किसी बर्तन द्वारा ढंक दिया जाय, तो उसका प्रकाश उस बर्तन-परिमाण हो जाता है। इसी प्रकार जब जीव, हाथी का शरीर धारण करता है, तो उतने बड़े शरीर में व्याप्त रहता है और जब कुन्थुआ का शरीर धारण करता है, तो उस छोटे शरीर में व्याप्त रहता है। इस प्रकार केवल शरीर में ही छोटे बड़े का अन्तर रहता है, किन्तु जीव में कुछ भी अन्तर नहीं है। सभी जीव समान हैं।
-भग. शतक ७, उ. ८, सूत्र २ जीव के सम्बन्ध में विविध जिज्ञासाएँ उस काल, उस समय में कौशाम्बी नगरी में जयन्ती नाम की श्रमणोपासिका रहती थी। वह सहनानीक राजा की पुत्री, शतानीक राजा की बहन, उदयन राजा की बूआ, मृगावती की ननंद और श्रमण भगवान महावीर स्वामी के साधुओं की प्रथम शय्यातर थी। जीवाजीवादि तत्त्वों की अच्छी जानकार थी।
भगवान महावीर का धर्मोपदेश सुनने के पश्चात् श्रमणोपासिका जयन्ती ने भगवान से प्रश्न पूछे जो बड़े ही तात्त्विक और हृदयस्पर्शी थे। उसका प्रथम प्रश्न था-“हे भन्ते ! जीव किस कारण से गुरुत्व-भारीपन को प्राप्त होते हैं?"
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