Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन ७९ से अलग विचारधारा रखते हैं। उनकी पृथक् विचारधारा का केन्द्र आत्मा का स्वरूप, विश्व की सत्यता और असत्यता है । पर किसी ने भी कालतत्त्व को स्वतन्त्र नहीं माना है। इसमें सभी वेदान्तदर्शन के व्याख्याकार एकमत हैं। इस प्रकार सांख्य, योग और उत्तरमीमांसा ये अस्वतन्त्र कालतत्त्ववादी हैं। जैनदर्शन में जैसे काल तत्त्व के सम्बन्ध में दो विचारधाराएँ हैं वैसे ही वैदिक दर्शन में भी एक स्वतन्त्र कालतत्त्ववादी हैं तो दूसरे अस्वतन्त्र कालतत्त्ववादी हैं।
बौद्धदर्शन में काल केवल व्यवहार के लिए कल्पित है। काल कोई स्वभावसिद्ध पदार्थ नहीं है, प्रज्ञप्ति मात्र है २४१ किन्तु अतीत, अनागत और वर्तमान आदि व्यवहार मुख्यकाल के बिना नहीं हो सकते। जैसे कि बालक में शेर का उपचार मुख्य शेर के सद्भाव में ही होता है, वैसे ही सम्पूर्ण कालिक व्यवहार मुख्य कालद्रव्य के बिना नहीं हो सकते।
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