Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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१०८.
भगवती सूत्र : एक परिशीलन १४३ १०२ पाशयति-गुण्डयत्यात्मानं पातयति चात्मन आनन्दरसं शोषयति क्षपयतीति पापम्।
-स्थानांगटीका, पृ. १६ १०३. बौद्धधर्म दर्शन, भाग १, पृष्ठ ४८०, ले. भरतसिंह उपाध्याय १०४. अभिधम्मत्थसंगहो पृ. १९, २० १०५ मनुस्मृति १२/५-७ १०६ देखिए धम्मपद अट्ठकथा ४-४४ (ख) अंगुत्तरनिकाय १-१४ १०७. योगशास्त्र, स्वोपज्ञवृत्ति, उद्धृत श्रमणसूत्र, पृ. १०४
प्रमादप्रातिकूल्येन मर्यादया ख्यान-कथनं प्रत्याख्यानम्। -स्थानांग टीका पृ. ४१ १०९. आवश्यकनियुक्ति, १५९४ ११०. व्यवहारसूत्र, उद्देशक १, बोल ३४ से ३९ १११. विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः।
-भगवद्गीता, २/५९ ११२. मैत्रायणी आरण्यक, १०/६२ . ११३. पढमंमि अ संघयणे वटुंतो सेलकुट्ट समाणो।
तेसि पि अ वुच्छेओ चउद्दसपुवीण वुच्छेए ॥ -उववाईसूत्र, तप अधिकार ११४. सर्वसम्पत्करी चैका पौरुषघ्नी तथापरा।।
वृत्तिभिक्षा च तत्त्वज्ञैरिति भिक्षा त्रिधोदिता | -अष्टक प्रकरण ५/१ ११५. उत्तराध्ययन ३०/२५ ११६. स्थानांग ६ . ११७. औपपातिकसूत्र, पृष्ठ ३८, २ ११८. (क) उत्तराध्ययन २४/११-१२ (ख) पिण्डनियुक्ति, ९२-९३ ११९. पायं रसा दित्तिकरा नराणं
___ -उत्तराध्ययन ३२/१0 १२०. (क) तत्र मनसो विकृतिहेतुत्वाद् विगतिहेतुत्वाद् वा विकृतयों, विगतयो।
-प्रवचनसारोद्धारवृत्ति (प्रत्या. द्वार) (ख) मनसो विकृति हेतुत्वाद् विकृतयः। -योगशास्त्र, ३ प्रकाशवृत्ति १२१. भगवतीसूत्र ७/१ १२२. प्रवचनसार ३/२७ १२३. भगवतीसूत्र शतक ८, उद्देशक ८ १२४. परिसहिज्जते इति परीसहा।
-आवश्यकचूर्णि २, पृ. १३९ १२५. स्थानांग, ७। सूत्र ५५४ १२६. औपपातिक, समवसरण अधिकार १२७. तत्त्वार्थसूत्र, श्रुतसागरीया वृत्ति ९/१९
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