Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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१५८ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
सामायिक और भाण्डोपकरण भगवान महावीर से एक बार गौतम ने पूछा-भगवन् ! सामायिक व्रत अंगीकार किये हुए श्रावक के भांडोपकरण कोई पुरुष ले जाय और सामायिक की पूर्णता के पश्चात् वह श्रावक भांडोपकरणों की गवेषणा करे तो उस समय वह अपने भांडोपकरण की गवेषणा करता है या दूसरे के भांडोपकरण की? ___ महावीर-गौतम ! वह स्वयं के भांडोपकरण की गवेषणा करता है, अन्य के भांडोपकरणों की नहीं।
गौतम-भन्ते ! शीलव्रत, गुणव्रत आदि प्रत्याख्यान एवं पोषधोपवास में श्रावक उन भांडों के स्वामित्व से मुक्त नहीं हो जाता?
महावीर-गौतम ! हो जाता है।
गौतम-फिर ऐसा कहने का क्या हेतु है, कि वह स्व-भाण्ड की गवेषणा करता है, पर-भाण्ड की नहीं ?
महावीर-गौतम ! सामायिक करने वाले श्रावक के मन में हिरण्य सुवर्ण आदि के प्रति ममत्व नहीं होता। परन्तु सामायिक व्रत पूर्ण होने के पश्चात् वह ममत्व भाव से युक्त हो जाता है। अतः ऐसा कहा जाता है, कि वह स्वकीय भाण्ड की अन्वेषणा करता है, परकीय भाण्ड की नहीं।
_ -भगवती सूत्र शतक ८, उ. ५, सूत्र १-३
व्यवहार मुमुक्षु आत्माओं की प्रवृत्ति-निवृत्ति एवं तत्कारणक ज्ञानविशेष को व्यवहार कहते हैं। शिष्य प्रश्न करता है-भन्ते ! व्यवहार कितने हैं ?
गुरुदेव ने उत्तर दिया-आर्य ! व्यवहार पांच हैं
आगम व्यवहार, श्रुत व्यवहार, आज्ञा व्यवहार, धारणा व्यवहार और जीत व्यवहार।
(क) आगम व्यवहार-तीर्थङ्कर, गणधर, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी केवलज्ञानी और दशपूर्व से लेकर चौदह पूर्वधारी के आगम ज्ञान से प्रवर्तित प्रवृत्ति-निवृत्ति रूप व्यवहार आगम व्यवहार है।
(ख) श्रुत व्यवहार-आचारांगादि सूत्रों से प्रवाया जाने वाला व्यवहार श्रुत व्यवहार है।
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