Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
View full book text
________________
भगवती सूत्र : एक परिशीलन १५९ (ग) आज्ञा व्यवहार-गीतार्थ, बहुश्रुत आचार्यादि देशान्तर में रहे हुए हों, वे पत्रादि द्वारा प्रायश्चित्तादि आज्ञा लिख भेजें या कहलवा दें उसके अनुसार प्रवृत्ति करना आज्ञा व्यवहार है।
(घ) धारणा व्यवहार-किसी गीतार्थ संविग्न मुनि ने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा जिस अपराध में जो प्रायश्चित्त दिया है, उसकी धारणा से वैसे अपराध में उसी प्रायश्चित्त के अनुसार प्रवृत्ति करना धारणा व्यवहार
(3) जीत व्यवहार-द्रव्य, क्षेत्र, काल. भाव. परुष. प्रतिसेवना का और संहनन, धृति आदि की उत्तरोत्तर वर्तमानकालिक हानि देखकर जो प्रायश्चित्त दिया जाता है, वह जीत-व्यवहार है।
इन पांच व्यवहारों में व्यवहर्ता के पास यदि आगम हो तो उसे आगम से ही व्यवहार चलाना चाहिए। आगम में भी केवलज्ञान, मनःपर्यवज्ञान आदि छह भेद हैं। इनमें पूर्व के होते हुए पश्चातवर्ती आगम ज्ञान से व्यवहार नहीं चलाना चाहिये। आगम के अभाव में धारणा से और धारणा के अभाव में जीत व्यवहार से प्रवृत्ति-निवृत्ति रूप व्यवहारों का प्रयोग करता हुआ साधु भगवान की आज्ञा का आराधक होता है।
-भग. शतक ८, उ. ८, सूत्र ७; व्यवहार सूत्र उ. १०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org