Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 160
________________ १४६ भगवती सूत्र : एक परिशीलन १८१. उत्तराध्ययन, अध्ययन २ १८२. समवायांग, २२१ १८३. अंगुत्तरनिकाय, ३४९ १८४. सत्तनिपात ५४१०-१२ १८५. सुत्तनिपात ५४१६ १८६. सत्तनिपात ५४।६; १५ १८७. मनुस्मृति ६।२३, ३४ देखिये-जैन, बौद्ध तथा गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, खण्ड-२ पृ. ३६२-३६३ १८८. तीर्थकर महावीर, भाग १,,पृ. १९८ १८९. (क) डिक्शनरी ऑव पाली प्रोपर नेम्स, मलालसेकर, II पृ. १५९ (ख) महाभारत १२/१९०/३ १९०. निशीथचूर्णि १३,४४२० १९१. निरुक्त १/१४ वैदिक कोष १९२. औपपातिकसूत्र, ३८ पृ. १७२ से १७६ १९३. सूत्रकृतांगनियुक्ति ३, ४, २, ३, ४ पृ. ९४ से ९५ १९४. पिण्डनियुक्ति गाथा, ३१४ १९५. बृहत्कल्पभाष्य भाग ४, पृ. ११७० १९६. निशीथसूत्र सभाष्य चूर्णि, भाग २ १९७. आवश्यकचूर्णि पृ. २७८ १९८. धम्मपद अट्ठकथा २, पृ. २०९ १९९. दीघनिकाय अट्ठकथा १, पृ. २७० २०0. ललितविस्तर पृ. २४८ २०१. मज्झिमनिकाय, चूलमालुक्यसुत्त; ६३ २०२. आगम युग का जैनदर्शन, पं. दलसुख मालवणिया, पृ. ६०-६१ २०३. तं जीवं तं सरीरं ति भिक्खु, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो न होति। अझं जीवं अञ्ज सरीरं ति वा भिक्खु, दिट्ठिया सति ब्रह्मचरियवासो न होति। एते ते भिक्खु, उभो अन्ते अनुपगम्म मञ्झेन तथागतो धम्मं देसेति ...." - संयुत्त xii १३५ २०४. आगम युग का जैनदर्शन, पं. दलसुख मालवणिया, पृ. ६६-६७ २०५. संयुत्तनिकाय, २१/२/४/५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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