Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन १२५ किया है। सभी द्रव्यों का स्थान आकाश है किन्तु जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य ही गति और स्थितिशील हैं। धर्म और अधर्म ये दोनों द्रव्य सम्पूर्ण आकाश में नहीं हैं, पर आकाश के कुछ ही भाग में हैं। वे जितने भाग में हैं उस भाग को लोकाकाश कहा है। लोकाकाश के चारों ओर अनन्त आकाश है। वह आकाश अलोकाकाश के नाम से विश्रुत है। भगवतीसूत्र में विविध प्रश्नों के द्वारा इस विषय पर बहुत ही गहराई से चिन्तन किया गया है। जहाँ पर धर्म-अधर्म, जीव-पुद्गल आदि की अवस्थिति होती है, वह लोक कहलाता है। लोक और अलोक की चर्चा भी भगवती में विस्तार से आई है। लोक और अलोक दोनों शाश्वत हैं। लोक के द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक, भावलोक आदि भेद भगवतीसूत्र शतक २, उद्देशक १ में किये गये हैं। भगवती, शतक १२, उद्देशक ७ में लोक कितना विराट् है, इस पर प्रकाश डाला है। भगवती शतक ७, उद्देशक १ में लोक के आधार पर भी चिन्तन किया गया है। शतक १३, उद्देशक ४ में लोक के मध्य भाग के सम्बन्ध में प्रकाश डाला है। शतक ११, उद्देशक १० में अधोलोक, तिर्यक्लोक, ऊर्ध्वलोक का विस्तार से निरूपण है। शतक ५, उद्देशक २ में लवणसमुद्र आदि के आकार पर विचार किया गया है। इस प्रकार लोक के सम्बन्ध में भी अनेक जिज्ञासाएं और समाधान हैं। अन्य दर्शनों के साथ लोक के स्वरूप पर और वर्णन पर तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन किया जा सकता है, पर विस्तारभय से हम यहाँ उस सम्बन्ध में जिज्ञासु पाठकों को लेखक का 'जैनदर्शन : स्वरूप और विश्लेषण' देखने की प्रेरणा देते हैं। समवसरण
भगवान् महावीर के युग में अनेक मत प्रचलित थे। अनेक दार्शनिक अपने-अपने चिन्तन का प्रचार कर रहे थे। आगम की भाषा में मत या दर्शन को समवसरण कहा है। जो समवसरण उस युग में प्रचलित थे, उन सभी को चार भागों में विभक्त किया है-क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी।
(१) क्रियावादी की विभिन्न परिभाषाएं मिलती हैं। प्रथम परिभाषा है कर्ता के बिना क्रिया नहीं होती। इसलिए क्रिया का कर्ता आत्मा है। आत्मा के अस्तित्व को जो स्वीकार करता है वह क्रियावादी है। दूसरी परिभाषा हैक्रिया ही प्रधान है, ज्ञान का उतना मूल्य नहीं, इस प्रकार की विचारधारा वाले क्रियावादी हैं। तृतीय परिभाषा है-जीव-अजीव, आदि पदार्थों का जो
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