Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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___ व्याख्यासाहित्य
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भगवतीसूत्र मूल में ही इतना विस्तृत रहा कि इस पर मनीषी आचार्यों ने व्याख्याएँ कम लिखी हैं। इस पर न नियुक्ति लिखी गयी, न भाष्य लिखा गया और न विस्तार से चूर्णि ही लिखी गयी। यों एक अतिलघु चूर्णि प्रस्तुत आगम पर है, पर वह भी अप्रकाशित है। उसके लेखक कौन रहे हैं, यह विज्ञों के लिए अन्वेषणीय है।
सर्वप्रथम भगवतीसूत्र पर नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेव ने व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति के नाम से एक वृत्ति लिखी है जो वृत्ति मूलानुसारी है। यह वृत्ति बहुत ही संक्षिप्त और शब्दार्थ प्रधान है। इस वृत्ति में जहाँ-तहाँ अनेक उद्धरण दिये गये हैं। इन उद्धरणों से आगम के गम्भीर रहस्यों को समझने में सहायता प्राप्त होती है। आचार्य अभयदेव ने अपनी वृत्ति में अनेक पाठान्तर भी दिये हैं और व्याख्याभेद भी दिये हैं, जो अपने आप में बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। व्याख्या में सर्वप्रथम आचार्य ने जिनेश्वर देव को नमस्कार किया है। उसके पश्चात् भगवान् महावीर, गणधर सुधर्मा और अनुयोगवृद्धजनों को व सर्वज्ञप्रवचन को श्रद्धास्निग्ध शब्दों में नमस्कार किया है। उसके पश्चात् आचार्य ने व्याख्याप्रज्ञप्ति की प्राचीन टीका और चर्णि तथा जीवाजीवाभिगम आदि की वृत्तियों की सहायता से प्रस्तुत आगम पर विवेचन करने का संकल्प किया है।३१० ___ वृत्तिकार ने व्याख्याप्रज्ञप्ति के विविध दृष्टियों से दस अर्थ भी बताये हैं, जो उनकी प्रखर प्रतिभा के स्पष्ट परिचायक हैं। व्याख्या में यत्र-तत्र अर्थवैविध्य दृग्गोचर होता है। मनीषियों का यह मानना है कि आचार्य अभयदेव ने जो प्राचीन टीका का उल्लेख किया है वह टीका आचार्य शीलांक की होनी चाहिए, पर वह टीका आज अनुपलब्ध है। आचार्य अभयदेव ने कहीं पर भी उस प्राचीन टीकाकार का नाम निर्देश नहीं किया
___ अनुश्रुति है कि आचार्य. शीलांक ने नौ अंगों पर टीका लिखी थी। वर्तमान में आचारांग और सूयगडांग पर ही उनकी टीकाएँ प्राप्त हैं, शेष सात आगमों पर नहीं। आचार्य शीलांक के अतिरिक्त अन्य किसी भी आचार्य ने व्याख्या लिखी हो, यह उल्लेख प्राचीन साहित्य में नहीं है। स्वयं आचार्य
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