Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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१३० भगवती सूत्र : एक परिशीलन परम्परा में प्रचलित रंग-बिरगे वस्त्रों के स्थान पर श्वेत वस्त्रों का उपयोग श्रमण के लिए आवश्यक माना। प्रतिक्रमण वर्षावास आदि कल्प में भी परिष्कार किया। पापित्य स्थविरों को यह भी पता नहीं था कि भगवान् महावीर तीर्थंकर हैं। इसीलिए वे पहले वन्दन नमस्कार नहीं करते और न किसी प्रकार का विनयभाव ही दिखलाते हैं। वे सहज जिज्ञासा प्रस्तुत कर देते हैं। जब वे समाधान सुनते हैं तो उन्हें आत्मविश्वास हो जाता है कि भगवान् महावीर सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं। तीर्थंकर हैं। तभी वे नमस्कार करते हैं और चातुर्याम धर्म को छोड़कर पंच महाव्रत धर्म को स्वीकार करते हैं।
प्रस्तुत आगम में देवेन्द्र शक्र से भयभीत बना हुआ असुरेन्द्र चमर भगवान महावीर की शरण में आकर बच जाता है। भौतिक वैभवसम्पन्न शक्ति भी जब कषाय से उत्प्रेरित होती है तो वह पागल प्राणी की तरह आचरण करने लगती है। स्वर्ग के देवों का महत्त्व भौतिक दृष्टि से भले ही रहा हो पर आध्यात्मिक दृष्टि से वे तिर्यंच से भी एक कदम पीछे हैं। स्वर्ग प्राप्ति का कारण है उत्कृष्ट क्रियाकाण्ड का आचरण। यही कारण है कि जैन श्रमण वेशधारी साधक जो मिथ्यात्वी है, वह भी नवग्रैवेयक तक पहुँच जाता है, जबकि अन्य तापस आदि उस स्थान पर नहीं पहुँच पाते। हमारी दृष्टि से इसका यही कारण हो सकता है कि जैन श्रमणों का आचार अहिंसाप्रधान था। इसमें हिंसा आदि से पूर्ण रूप से बचा जाता है। जबकि अन्य तापस आदि उत्कृष्ट कठोर साधना तो करते थे, पर साथ ही कन्दमूल फलों का आहार भी करते, यज्ञ आदि भी करते। स्नान आदि के द्वारा षट्काय के जीवों की विराधना भी करते। इस हिंसा आदि के कारण ही वे उतनी उक्रान्ति नहीं कर पाते थे। दोनों ही मिथ्यादृष्टि होने पर भी वे हिंसा के कारण ही ऊँचे स्वर्ग को प्राप्त नहीं कर सकते। __ भगवान् महावीर के समय में यह मान्यता प्रचलित थी कि युद्ध में मरने वाले स्वर्ग में जाते हैं। इस मान्यता का निरसन भी प्रस्तुत आगम में किया गया है। युद्ध से स्वर्ग प्राप्त नहीं होता अपितु न्यायपूर्वक युद्ध करने के पश्चात् युद्धकर्ता अपने दुष्कृत्यों पर अन्तर्हदय से पश्चात्ताप करता है। उस पश्चात्ताप से आत्मा की शुद्धि होती है और वह स्वर्ग में जाता है। गीता के "हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग" के रहस्य का उद्घाटन बहुत ही आकर्षक ढंग से प्रस्तुत आगम में हुआ है।
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