Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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११२ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
दीर्घकालिकी संज्ञा को संप्रधारणसंज्ञा भी कहा है। ऐसे संज्ञी को समनस्क कहा है। देव, नारक, गर्भज तिर्यञ्च और गर्भज मनुष्य ये सभी संज्ञी हैं। इस प्रकार संसारी जीव के चौदह प्रकार हैं।
प्रस्तुत आगम में अनेक दृष्टियों से और अनेक प्रश्नों के माध्यम से जीव और जीव के भेद-प्रभेदों के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है। शरीर चर्चा
भगवतीसूत्र शतक सोलहवें, उद्देशक पहले में तथा अन्य स्थलों पर भी शरीर के सम्बन्ध में जिज्ञासाएं प्रस्तुत की हैं । भगवान् महावीर ने शरीर के औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण ये पांच प्रकार बताये हैं। आत्मा अरूप है, अशब्द है, अगन्ध है, अरस है और अस्पर्श है। इस कारण वह अदृश्य है । पर मूर्त शरीर से बन्धने के कारण वह दृग्गोचर होता है। आत्मा जब तक संसार में रहेगा वह स्थूल या सूक्ष्म शरीर के आधार से ही रहेगा । जीव की जितनी भी प्रवृत्तियाँ हैं वे प्रायः सभी शरीर के द्वारा होती हैं । औदारिक शरीर की निष्पत्ति स्थूल पुद्गलों के द्वारा होती है। उस शरीर का छेदन - भेदन भी होता है और मोक्ष की उपलब्धि भी इसी शरीर के द्वारा होती है। वैक्रिय शरीर के द्वारा विविध रूप निर्मित किये जा सकते हैं। मृत्यु के पश्चात् इस शरीर की अवस्थिति नहीं रहती । वह कपूर की तरह उड़ जाता है। नारक और देवों में यह शरीर सहज होता है, मनुष्य और तिर्यञ्च में यह शरीर लब्धि से प्राप्त होता है। विशिष्ट योगशक्तिसम्पन्न चतुर्दशपूर्वी मुनि किसी विशिष्ट प्रयोजन से जिस शरीर की संरचना करते हैं वह आहारक शरीर है। जो शरीर दीप्ति का कारण है और जिसमें आहार आदि पचाने की क्षमता है वह तैजस शरीर है। इस शरीर के अंगोपांग नहीं होते और पूर्ववर्ती तीनों शरीरों से यह शरीर सूक्ष्म होता है। जो शरीर चारों प्रकार के शरीरों का कारण है और जिस शरीर का निर्माण ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्मपुद्गलों से होता है वह कार्मण शरीर है। तैजस और कार्मण शरीर प्रत्येक संसारी जीव के साथ रहते हैं। इन दोनों शरीरों के छूटते ही आत्मा मुक्त बन जाता है।
इन्द्रियाँ
भगवतीसूत्र शतक दो, उद्देशक चार में गणधर गौतन की जिज्ञासा पर भगवान् महावीर ने इन्द्रियों के पांच प्रकार बताये हैं। एक निश्चित विषय का ज्ञान कराने वाली आत्म-चेतना इन्द्रिय है। ज्ञान आत्मा का गुण है वह
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