Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन ८१ उपोसथ में विकाल भोजन का परित्याग है जबकि जैन परम्परा में सभी प्रकार के आहार न करने का विधान है। अन्य जो बातें हैं, वे प्रायः समान हैं। पौषध-व्रत के पीछे एक विचारदृष्टि रही है, वह यह कि गृहस्थ साधक जिसका जीवन अहर्निश प्रपञ्चों से घिरा हुआ है वह कुछ समय निकाल कर धर्म-आराधना करे। ईसा मसीह ने दस आदेशों में एक आदेश यह दिया है कि सात दिन में एक दिन विश्राम लेकर पवित्र आचरण करना चाहिये। सम्भव है यह आदेश एक दिन उपोसथ या पौषध की तरह ही रहा हो पर आज उसमें विकृति आ गई है। तथागत बुद्ध ने उपोसथ का आदर्श अर्हत्व की उपलब्धि बताया है। उन्होंने अंगुत्तरनिकाय में स्पष्ट शब्दों में कहा हैक्षीण आम्रव अर्हत् का यह कथन उचित है कि जो मेरे समान बनना चाहते हैं वे पक्ष की चतुर्दशी, पूर्णिमा, अष्टमी और प्रतिहार्य पक्ष को अष्टांगशील युक्त उपोसथ व्रत का आचरण करें।२४५ पण्डित सुखलालजी संघवी का यह अभिमत था कि उपोसथ व्रत आजीवक सम्प्रदाय और वेदान्त परम्परा में प्रकारान्तर से प्रचलित रहा है।२४६ प्रस्तुत प्रकरण में पौषध के दोनों रूप उजागर हुए हैं। एक खा-पी कर पौषध करने का और दूसरा बिना खाए-पीए ब्रह्मचर्य की आराधना साधना करते हुए पौषध करने का।
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