Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन ३९ खाता है, वह अंगारदोष सहित आहार कहलाता है। आहार करते समय अन्तर्मानस में क्रोध की आग सुलग रही हो तो वह आहार धूमदोष सहित कहलाता है और स्वाद उत्पन्न करने के लिए एक दूसरे पदार्थ का संयोजन किया जाये, वह संयोजनादोष है। श्रमण क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त, मार्गातिक्रान्त और प्रमाणातिक्रान्त आहार आदि ग्रहण न करे पर नवकोटि विशुद्ध आहार ग्रहण करे।९६ श्रमण का आहार संयम साधना की अभिवृद्धि के लिए होता है। आहार के सम्बन्ध में भगवती में अनेक स्थलों पर चिन्तन प्रस्तुत किया है।९७ दशवैकालिक,९८ पिण्डनियुक्ति९९ प्रभृति आगम ग्रन्थों में भी भिक्षाचर्या पर विस्तार से विश्लेषण किया गया है। पाप : एक चिन्तन ___ भारतीय मनीषियों ने पाप के सम्बन्ध में भी अपना स्पष्ट चिन्तन प्रस्तुत किया है। पाप की परिभाषा करते हुए लिखा है, जो आत्मा को बन्धन में डाले, जिसके कारण आत्मा का पतन हो, जो आत्मा के आनन्द का शोषण करे और आत्मशक्तियों का क्षय करे, वह पाप है।१00 उत्तराध्ययनचर्णि१०१ में लिखा है-जो आत्मा को बांधता है वह पाप है। स्थानांगटीका१०२ में आचार्य अभयदेव ने लिखा है-जो नीचे गिराता है, वह पाप है; जो आत्मा के आनन्दरस का क्षय करता है, वह पाप है। जिस विचार और आचार से अपना और पर का अहित हो और जिससे अनिष्ट फल की प्राप्ति होती हो, वह पाप है। भगवतीसूत्र शतक १, उद्देशक ८ में पाप के विषय में चिन्तन करते हए लिखा है कि एक शिकारी अपनी आजीविका चलाने के लिए हरिण का शिकार करने हेतु जंगल में खड्डे खोदता है और उसमें जाल बिछाता हो, उस शिकारी को किस प्रकार की क्रिया लगती है ? __ भगवान् ने कहा कि वह शिकारी जाल को थामे हुए है पर जाल में मृग को फँसाता नहीं है, बाण से उसे मारता नहीं है, उस शिकारी को कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी ये तीन कियाएँ लगती हैं। जब वह मृग को बांधता है पर मारता नहीं है तब उसे इन तीन क्रियाओं के अतिरिक्त एक परितापनिकी चतुर्थ क्रिया भी लगती है और जब वह मृग को मार देता है तो उपर्युक्त चार क्रियाओं के अतिरिक्त उसे पांचवीं प्राणातिपातिकी क्रिया भी
लगती है।
भगवतीसूत्र शतक ५, उद्देशक ६ में गणधर गौतम ने प्रश्न किया कि एक व्यक्ति आकाश में बाण फेंकता है, वह बाण आकाश में अनेक प्राणियों
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