Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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६६ भगवती सूत्र : एक परिशीलन
जैन और बौद्ध परम्परा में जिस प्रकार परीषह का निरूपण हुआ है और मुनियों के लिये कष्ट-सहिष्णु होना आवश्यक माना है वैसे ही वैदिक परम्परा में भी संन्यासियों के लिये कष्टसहिष्णु होना आवश्यक माना गया है। वहाँ पर यह भी प्रतिपादित किया गया है कि संन्यासियों को कष्टों को निमंत्रित करना चाहिए। आचार्य मनु ने लिखा है-वानप्रस्थी को पंचाग्नि के मध्य खड़े होकर, वर्षा में खले में खड़े रहकर और शीत ऋत में गीले वस्त्र धारण करने चाहिए।१८७ उसे खुले आकाश के नीचे सोना चाहिये और शरीर में रोग पैदा होने पर भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। इस तरह कष्ट को स्वेच्छापूर्वक निमंत्रण देने की प्रेरणा दी है।
किन कर्मप्रकृतियों के कारण कौन से परीषह होते हैं, उस पर भी प्रकाश डालते हुए बताया है-ज्ञानावरणीय, वेदनीय, मोहनीय और अन्तराय के कारण परीषह उत्पन्न होते हैं।
इस प्रकार साधनाखण्ड में विविध प्रकार की जिज्ञासाएं हैं और सटीक समाधान भी हैं। अत्यधिक विस्तार न हो जाये इस दृष्टि से हमने संक्षेप में ' ही कुछ सूचन किया है। भगवती शतक २५, उद्देशक ४ में संक्षिप्त में द्वादशांगी का परिचय दिया है। उसका अधिक विस्तार समवायांग और नन्दीसूत्र में मिलता है।
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