Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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भगवती सूत्र : एक परिशीलन बौद्धधर्म में कायिक, वाचिक और मानसिक आधार पर पाप या अकुशल कर्म के दस प्रकार प्रतिपादित हैं । १०३
(१) कायिक पाप - १. प्राणातिपात ( हिंसा), २. अदत्तादान (चोरी), ३. कामेसुमिच्छाचार (कामभोग सम्बन्धी दुराचार ) ।
(२) वाचिक पाप - ४. मुसावाद (असत्य भाषण ), ५. पिसुना वाचा ( पिशुन वचन ), ६. फरुसा वाचा ( कठोर वचन), ७. सम्फलाप (व्यर्थ आलाप) ।
(३) मानसिक पाप - ८. अभिज्जा (लोभ), ९. व्यापाद (मानसिक हिंसा या अहित चिन्तन), १०. मिच्छादिट्टी (मिध्यादृष्टि ) |
अभिधम्मत्थसंगहो१०४ नामक बौद्ध ग्रन्थ में भी चौहह अकुशल चैतसिक पापों का निरूपण हुआ है। वे इस प्रकार हैं
१. मोहमूढ़ता, २ अहिरीक (निर्लज्जता ), ३. अनोतप्पं- अभीरुता ( पापकर्म में भय न मानना ) ४. उद्धच्चं - उद्धतपन ( चंचलता ), ५. लोभो (तृष्णा), ६. दिट्ठी - मिथ्यादृष्टि, ७. मानो - अहंकार ८. दोसो - द्वेष, ९. इस्सा - ईर्ष्या, १०. मच्छरियं - मात्सर्य्य ( अपनी सम्पत्ति को छिपाने की प्रवृत्ति), ११. कुक्कुच्च - कौकृत्य (कृत अकृत के बारे में पश्चात्ताप), १२. थीनं, १३. मिद्धं, १४. विचिकिच्छा - विचिकिस्सा ( संशय)।
इसी प्रकार वैदिकपरम्परा के ग्रन्थ मनुस्मृति १०५ में भी पापाचरण के दस प्रकार प्रतिपादित हैं
(क) कायिक- १. हिंसा, २. चोरी, ३. व्यभिचार,
(ख) वाचिक - ४. मिथ्या (असत्य), ५. ताना मारना, ६. कटुवचन, ७. असंगत वाणी,
(ग) मानसिक - ८. परद्रव्य की अभिलाषा, ९. अहितचिन्तन, १०. व्यर्थ आग्रह |
इस प्रकार सभी मनीषियों ने पाप से मुक्त होने का संदेश दिया है। आध्यात्मिक शक्ति
आज का मानव भौतिक विज्ञान की शक्ति से न्यूनाधिक रूप में भलीभाँति परिचित है। विज्ञान की शक्ति से मानव आकाश में पक्षी की भाँति उड़ान भर रहा है, मछली की भाँति अनन्त जलराशि पर तैर रहा है और
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