Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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निराकरण, सांख्यमत की मिथ्यात्वता, षट्पदार्थवादियों के मत का स्वरूप, छह पदार्थों की नित्यता की सिद्धि, सांख्य के एकान्तनित्यत्व का खण्डन, असत्कार्यवादी बौद्धमत में आत्मा का स्वरूप, चातुर्धातुकवादी बौद्धमत-निरूपण, अफलबादी बौद्ध आदि के मिथ्या मन्तव्यों का खण्डन, अन्यदर्शन वालों का अपना-अपना मताग्रह, अन्यदर्शनी लोगों की संधि के विषय में अनभिज्ञता, अन्यदर्शनियों
को मिलने वाला भयंकर फल, सर्वज्ञ महावीर द्वारा भविष्यवाणी। द्वितीय उद्देशक
१३६--१६६ नियतिवादियों के मत का निरूपण, नियतिवादियों का मिथ्या प्ररूपण, नियतिवाद की भ्रमपूर्ण मान्यता का निराकरण, नियतिवादियों के मिथ्यात्व का फल, एकान्तवादी अज्ञानियों की दशा का चित्रण, मूर्ख मृग के समान अज्ञानियों की दशा, अहितबुद्धि मृग की-सी दशा, अज्ञानी मृग के समान मिथ्यादृष्टि श्रमणों की मनोदशा, शंकनीय-अशंकनीय का विपर्यास, समस्त कषाय-नाश ही सर्वथा कर्मक्षय का कारण, मिथ्यादृष्टि अज्ञानवादियों का अनन्तजन्म-मरण, ज्ञान के प्रदर्शकों में भी जीवों के ज्ञान का अभाव, अज्ञानियों की तोता रटन, अज्ञानवाद अज्ञान-पक्ष से सिद्ध नहीं हो सकता, अंधे के पीछे अंधा : विनाश का धंधा, आजीवक आदि मतों द्वारा निरूपण, अज्ञानवादियों के कुतर्क, धर्माधर्म से अनभिज्ञ : अज्ञानवादी स्वमत-प्रशंसा, परमत-निन्दा ही एकान्तवाद का मूल, कर्म चिन्ता के प्रति लापरवाह, एकान्त क्रियावादी दर्शन, कर्म चिन्ता से दूर, क्रियावादी कर्म-बन्धन के तीन आदान : बौद्धमत में भाव विशुद्धि से कर्म-बन्धन नहीं, बौद्ध प्रदत्त दृष्टान्त, मन से द्वेष करने पर भी कर्मबन्ध नहीं, घोर असत्य, विभिन्न मतवादियों द्वारा निःशंक पाप सेवन, विभिन्न दार्शनिकों की जन्मान्धता और सछिद्र
नौकारोहण, तथाकथित मिथ्यात्वी श्रमणों की दशा । तृतीय उद्देशक
१६७-२४५ दोषदूषित आहार-सेवन : द्विपक्ष दोषसेवन, आधाकर्मी आहारसेवी : अत्यन्त दुख के भागी, सुखशील आचारहीन श्रमणों की दशा, लोक की रचना के सम्बन्ध में विविध मत, लोक : ईश्वरकृत एवं प्रधानादिकृत, जगत की रचना : विष्णु और माया से, अण्डे से रचित ब्रम्हाण्ड की कहानी, जगत की रचना के सम्बन्ध में पूर्वोक्त मतों
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