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१६ । आदर्श कन्या
तरह समझ में नहीं आती।" पुत्रियो ! तुम इन वृद्धाओं की बातों से शिक्षा लो और अपने समय का क्षण भी व्यर्थ न जाने दो। घड़ी की सुई की तरह एक-एक मिनट के लिए भी नियमबद्ध होकर काम करो।
बहुत सी लड़कियों और स्त्रियों समय की कदर नहीं जानतीं । वे व्यर्थ ही खाट तोड़ती रहती है, गपशप मारा करती हैं। समय बिताने के लिए मुहल्ले की स्त्रियों को बुला लेती हैं, या स्वयं उनके पास पहुंच जाती हैं । चार-पाँच इकट्ठी होकर आलोचना आरम्भ करती हैं, तो बस फिर क्या, समूचे गांव भर के स्त्री-पुरुषों की आलोचना कर डालती हैं। किसी में कुछ दोष निकालना, किसी में कुछ। एक तुफान खड़ा कर देती हैं। आपस की झूठी-सच्ची निन्दा बाई से मन और जिह्वा दोनों को व्यर्थ ही अपवित्र करने में पता नहीं, उन्हें क्या आनन्द आता है ? और जब इस महिला-महासभा की रिपोर्ट बाहर जाती है, तो गाँव के शान्त परिवारों में महाभारत का-सा युद्ध ठन' जाता है। जिनकी निन्दा बुराई की गई है। भला वे कब चुप बैठने वाली हैं। ना समझ स्त्रियाँ व्यर्थ ही मुहल्ले में कलह के बीज बो देती हैं। यह है, समय की कदर न करने का दुष्परिणाम । यह है, आपस की गपशप का भयंकर फल ! दुर्गुण नहीं आयेंगे :
पुत्रियो ! तुम स्वयं चतुर हो अपना सब हिताहित समझ सकती हो । समय चिन्तामणि रत्न है, तुम इससे मन चाहा फल पा सकती हो । समय पर विद्या पढ़ो, समय पर धर्माराधन करो, समय पर दान करो, परोपकार करो समय पर घर में किसी बीमार की सेवा शुश्रूषा करो, समय पर छोटे बाल बच्चों को कहानी सुनाकर अच्छी शिक्षा दो, समय पर घर में बड़ी-बूढ़ी स्त्रियों को कोई धार्मिक
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