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कण-कण से सागर बन जाता है। मानवता के इन अमुत कणों का संचय कीजिए, मानवता का महान सागर छलछला उठेगा।
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मानवता के ये अमृत कण"!
जीवन में जो हृदय और बुद्धि का विकास करे, वही देव है ! जीवन में जो इच्छाओं का गुलाम हाता है, वही नारको है ! जीवन में जो विवेक का आचरण नहीं रखता, वही पशु है ! जीवन में जो दुःखो के प्रति सहानुभूति रखता है, वही मनुष्य है.
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जो अपना स्वाभिमान नहीं रखता, वह मनुष्य नहीं। जो अपनी बुद्धि पर विश्वास नहीं रखता, वह मनुष्य नहीं ! जो हितषियों का परामर्श नहीं मानता, वह मनुष्य नहीं !
माहार के बढ़ने से बीमारी होती है ! निद्रा के बढ़ने से बुद्धि का नाश होता है ! भय के बढ़ने से बल को हानि हाती है ! काम-वासना के बढ़ने से मनुष्यत्व का नाश होता है। आहार, निद्रा, भय और काम-वासना बढ़ाने से बढ़ती है ?
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+ मान की चाह से मान दूर भागता है ! मान देने से मान मिलता है । प्रामाणिक बातों से मान मिलता है ! नम्र स्वभाव से मान मिलता है !
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