Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 108
________________ कण-कण से सागर बन जाता है। मानवता के इन अमुत कणों का संचय कीजिए, मानवता का महान सागर छलछला उठेगा। 26 मानवता के ये अमृत कण"! जीवन में जो हृदय और बुद्धि का विकास करे, वही देव है ! जीवन में जो इच्छाओं का गुलाम हाता है, वही नारको है ! जीवन में जो विवेक का आचरण नहीं रखता, वही पशु है ! जीवन में जो दुःखो के प्रति सहानुभूति रखता है, वही मनुष्य है. x जो अपना स्वाभिमान नहीं रखता, वह मनुष्य नहीं। जो अपनी बुद्धि पर विश्वास नहीं रखता, वह मनुष्य नहीं ! जो हितषियों का परामर्श नहीं मानता, वह मनुष्य नहीं ! माहार के बढ़ने से बीमारी होती है ! निद्रा के बढ़ने से बुद्धि का नाश होता है ! भय के बढ़ने से बल को हानि हाती है ! काम-वासना के बढ़ने से मनुष्यत्व का नाश होता है। आहार, निद्रा, भय और काम-वासना बढ़ाने से बढ़ती है ? + + मान की चाह से मान दूर भागता है ! मान देने से मान मिलता है । प्रामाणिक बातों से मान मिलता है ! नम्र स्वभाव से मान मिलता है ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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