Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 112
________________ तप अग्नि है, आत्मा का स्वर्ण तप के द्वारा निखरता है। तप हो जीवन में त्याग की ज्योति प्रज्ज्वलित करता है । यहाँ पढ़िए तप की परिभाषाएँ। चे लप को परिभाषाएँ : जहाँ अहिंसा, संयम और ता है, वहाँ धर्म है। मन, वचन, शरीर से किसी को दुःख न देना, अहिंसा है। भोग की लालसाओं को वश में रखना, संयम है। मन की वासनाओं को भस्म करने का उद्योग, तप है। लालसाओं को भस्म करने वाली आध्यात्मिक अग्नि, यह तप है। पूर्व कमों को जलाने वाली आध्यात्मिक अग्नि, यह तप है। उपहास, मिताहार, परिश्रम करके आहार करना, यह तप है। शरीर को माराम तलब न बनाकर सादगी से रहना, यह तप है। गुरु-जनों की विनय-भक्ति करना, सेवा करना, यह तप है। X X X थोड़ा बोलने का अभ्यास करना, यह भी तप है । विचार कर बोलने का अभ्याप करना, यह भी तप है। दीन-दुखी की सेवा, परोपकार करना, यह भी तप है। अपनी भूलों को स्वीकार करना, यह भी तप है। सदैव ज्ञानाभ्यास करना, ज्ञान की वृद्धि करना, यह भी ता है। भगवत्स्वरूप का ध्यान चिन्तन करना, यह भी तप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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