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आलस्य मानव जाति का भयंकर शत्रु है। इसने मनुष्य पर हमला कर दिया है । इस शत्रु पर विजय प्राप्त करने की कला इस लेख में सहसा ही मिल जाएगी !
मनुष्य का शत्र : आलस्य
आलस्य मानव जाति का सबसे बड़ा भयंकर शत्रु है । आलसी आदमी किसी काम का नहीं रहता । वह न घर का हो काम कर सकता है, और न बाहर का ही । आलसो मनुष्यों की संसार में बड़ी दुर्दशा होती है । आलसियों का हृदय नाना प्रकार की चिन्ताओं का घर बन जाता है । उनके हृदय में अनेक प्रकार को दुर्भावनाओं का विशाक्त प्रवाह निरन्तर बहता रहता है ।
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शरीर काम चाहता है। बिना काम के किये भजबूत से मजबूत शरीर भी दुर्बल हो जाता है और अनेक प्रकार के रोगों का घर बन जाता है । दिन-रात इधर-उधर खाट पर पड़े रहना, काम से जी चराते फिरना, कहाँ की मनुष्यता है ? जो मनुष्य काम नहीं करता है, और खाने के लिए तैयार रहता है, उससे बढ़कर दूसरा और कौन पापी होगा ? एक आचार्य कहते हैं-बिना परिश्रम किये, बिना लोकोपकार का काम किए, जो व्यक्ति व्यर्थ ही परिवार की छाती का भार बनकर खाता है, वह अगले जन्म में अजगर बनता है ।"
मालती न बनो :
पुत्रियों ! तुम कभी भी आलस्य मत करो - काम से जी न
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