Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 103
________________ ६४ : आदर्श कन्या की देवी बनना नहीं चाहती है। प्रकृति के स्वयं सिद्ध सौन्दर्य पर उसे विश्वास नहीं रहा। बड़े-बड़े शहरों में आज का नारी जोवन "देखकर कौन कह सकता है, कि यहां की नारी गृह देवी है, प्रत्युत ऐसा भान होता है, कि आज की भारतीय नारी का आदशं बाजारू बन गया? पुत्रियो ! तुम्हें नारी जीवन के इस विनाशकारी प्रवाह का शीघ्र ही रुख मोड़ना पड़गा। तुम अपने सीधे-सादे कर्मठ जोवन से विलासिता का परित्याग कर सादगी का सुन्दर आदर्श उपस्थित कर सकती हो । जैन-धर्म का आदर्श शरीर नहीं है, शरीर का कालागोरापन नहा है, रग-बिरंगे वस्त्र नहीं है और न सोने-चांदी के जड़ाऊ गहने ही हैं । जैन धर्म का आदर्श तप और त्याग है । सेवामय सीदा-सादा कमठ जीवन ही नारी का आदर्श है। जो नारी स्वच्छता, सुन्दरता, शुद्धता से प्रेम करेगी, वह वासना बढ़ाने वाले फशन को कदापि महत्व नही देगी। काम प्यारा है चाम नहीं : क्या तुम समझती हो, कि भड़कीले कपड़े पहनकर दूसरी साधारण स्थिति की स्त्रियों को नीचा दिखा सकोगी ? यदि तुम ऐसा समझती हो तो कहना पड़ेगा कि तुम मूर्ख हो। इस प्रकार अमर्यादित शृंगार करना कभी नारी के महत्व का कारण नहीं हो सकता । यह निश्चित समझो, कि किसी का गौरव इस कारण नहीं होता, कि उसके पास अच्छे-अच्छे कपड़े हैं और वह अच्छा सुगन्धित तेल लगाती है । गौरव के लिए अच्छे गुणों का होना आवश्यक है । संसार में सदा से सदाचार और सरल जीवन का हो आदर तथा गौरव होता आया है, क्योंकि मनुष्य को काम प्यारा है चाम नहीं। विलासिता स्वयं एक महान् दुर्गुण है। यह मन में वासनाओं को बढ़ाता है । ब्रह्मचर्य और सतीत्व की भावनाओं को क्षीण कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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