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नारी को सच्चा सुख, सबको खिला कर खाने में है । आज यह आदर्श धूमिल पड़ रहा है । अतः हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा, इस धूमिलता में नारी का मातृत्व भी धूमिल हो रहा है ।
नारी का पद : अन्नपूर्णा
इतिहास, गवाही दे रहा है- एक स्वर से, एक राग से, प्रतिपल प्रतिक्षण कि नारी का पद अन्नपूर्णा है । नारी साक्षात् स्नेह और प्रेम की जीवित मृर्ति है । नारी का प्रेम रस से सराबोर हृदय, अपने घर के सदस्यों को प्रेम पूर्वक भोजन परोस चुकने पर, उन सबके खा चुकने पर जो सुखानुभूति करता है, उसका व्याख्यान नारी का हृदय ही कर सकता है । उस समय जो प्रसन्नता उसे अनुभव होती है, उसका यथातथ्य वर्णन उसकी वाणी स्वयं भी नहीं कर सकती। उस अपूर्व प्रसन्नता की अनुभूति तो अनुभूतशील मनुष्य का हृदय ही कर सकता है ।
अकेले खाना पाप है :
अगर तुम्हें अच्छी नारी बनना है और इज्जत की जिन्दगी से जीना है, तो पहले छोटे-बड़े भाई-बहिनों को बाँटकर पीछे से बचा हुआ खुद खाओ ।
भगवान् महावीर ने कहा है, कि जो अकेले खाता है, साथ
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