Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 74
________________ सरलता और सरसता : ६५ का केन्द्र बन जाता है । और उसके मन की उपल-पुथल कभी भी शाश्त नहीं होती। काम से पहले सोचिए : प्यारी पुत्रियो ! तुम कभी भी कोई अपराध छिपाकर मत रक्खा करो । इन्सान है, भूल' हो जाती है। भूल हो जाना, कोई बड़ी बात नहीं है, 'संसार के बड़े-बड़े आदमी भी भूल कर गए हैं । परन्तु पाप है भूल को पाना, मना करना, तुम्हारा समस्त व्यवहार सरल हो, तुम्हारा बचन और मन सरल हो, तुम अन्दर और बाहर एक बनकर रहो । मन के अन्दार तरह-तरह के पर्दे अच्छे नहीं लगते । जब तुम किसी तरह का काम करने लगो, किसी से मिलो, किसी से बालचीत करो, तो उसके पहले अपने हृदय में इस बात का अवश्यं विचार करलो कि "इस बात अथवा काम के प्रकाशित होने में हमें कोई भय तो.नहीं। समय आने पर हमें इस बात या काम को बिना किसी संकोच के सबके सामने प्रकाशित तो करा सकते हैं " यदि इस प्रकार प्रत्येक कार्य करने से पहले, अपने हृदय में विचार कर लिया. करो, तो तुम्हें इसका मधुर फल शीघ्र ही मालूम हो मे लगेगा । उस समय तुम जान सकोगी, कि हम कोई भूल नहीं कर रही हैं, माया नहीं रच रही हैं, अपराध नहीं छिपा रही है । उस समय तुनको मालूम होगा, तुम पर लोगों का कितना अधिक विश्वास बढ़ा है और तुम्हारा हृदय कितना अधिक पवित्र हुआ है वह सब तुम तभी प्राप्त कर सकोगी, जब तुम्हारा मन दर्पण के समान साफ होगा। सरलता और चतुरता: परलता का यह अर्थ नहीं है, कि तुम बिल्कुल बुद्ध बनकर रहो। सरलता का विरोध छल-कपट से है चतुरता से नहीं, कपटी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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