Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 93
________________ ८४ : आदर्श कन्या स्त्री का आभूषण लज्जा है । यह याद रक्खो-जो लड़को बचपन में निर्लज्ज हो जाती है, उस पर फिर सदाचार का रंग चढ़ना कठिन है। मोती की आब एक बार उतर जाने के बाद फिर कभो वापिस नहीं आती ! ब्रह्मचर्य का दूसरा नम्बर विवाह संस्कार होने के पश्चात् आता है । माता-पिता जिसके साथ विधिवत् विवाह कर दें, वह पति है। सदैव पति की आज्ञा में रहना, पति की स्नेह भक्ति करना, प्रत्येक सुशील लड़की का कर्तव्य है । यदि भाग्यवश पति में कुछ त्रुटि हो, तो हताश और उदास नहीं होना चाहिए, बड़ी गम्भीरता और चतुरता से त्रुटियों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए । एक पति के अतिरिक्त संसार के जितने भी पुरुष हैं, सबको पिता, भाई और पुत्र के समान समझना चाहिए। विवाहित होने के बाद सीता, द्रौपदी और अंजना आदि महासतियों के आदर्श अपने सम्मुख रखने चाहिए। पत्नी के गुण : विवाहित जोवन में स्त्री को किस प्रकार रहना चाहिए, इस सम्बन्ध में कुछ सुभाषितों पर चिन्तन-मनन करना लाभप्रद होगा। वै सुभाषित जीवन पर गहरी छाप डालते हैं, और जीवन भर आदर्श सूत्रों का काम देते हैं। पत्नी और दासी का कितना सुन्दर विभाजन है। १. जो पति की सहायक हो, वह पत्नी ! २. जो पति की सहचारिणी हो, वह पत्नी ! ३. जो पति के जीवन को सुखी करे, वह पत्नी ! ४. जो पति के जीवन को उच्च बनाए, वह पत्नी । ५. जो पति के दोषों को नम्रता से सुधारे, वह पत्नी! ६. जो पति के सुख-दुःख में बराबर भाग ले ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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