Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 91
________________ ८२ : आदर्श कन्या कर देती है । ब्रह्मचर्य का व्रत, सब रोगों को कोसों दूर भगाकर शरीर में बल बुद्धि का विकास करता है, और मुख मण्डल पर अपूर्व सौन्दर्य एवं तेज का प्रकाश डालता है । ब्रह्मचर्य का महत्व : भगवान् महावीर ने ब्रह्मचर्य का महत्व बहुत ऊँचे शब्द में वर्णन किया है । " ब्रह्मचर्य का पालन अतीव कठिन काम है । जो साधक ब्रह्मचर्य का पालन करता है, उसके चरण कमलों में देव, राक्षस, मानव और दानव आदि सभी नमस्कार करते हैं । जैन धर्म में ब्रह्मचयं की गणना मुनियों के पाँच महाव्रतों में चौथे नम्बर पर है । और गृहस्थ के पाँच अवगुणों और बारह व्रतों में भी चौथा नम्बर है । ब्रह्मचर्य के प्रभाव से विष भी अमृत हो जाता है, धधकती हुई अग्नि शीतल बन जाती है । महारानी सीता ने अपने सतीत्व से जलते हुए अग्निकुण्ड को जल कुण्ड बना दिया था, याद है न आख्यान ! ब्रह्मचर्य पालन का प्रकार : ब्रह्मचर्य दो प्रकार से पालन किया जाता है - एक पूर्ण रूप से और दूसरे देश रूप से । पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य पालन का अर्थ हैनियम धारण करने के बाद जीवन भर के लिए मन, वचन और कर्म से विषय वासना से अलग रहना। जैन मुनि और जैन साध्वियों यही प्रथम नम्बर के पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करती है । जैन साधु-स्त्री को, चाहे वह एक दिन की बच्ची ही क्यों न हो, उसका भी स्पर्श नहीं करता । जैन - साध्वी भी पुरुष को चाहे वह दूध पीने वाला बच्चा ही क्यों न हो, स्पर्श नहीं करती । ब्रह्मचर्य का इस प्रकार अखण्ड पालन ब्रह्मचर्य महाव्रत कहलाता है । देश रूप से ब्रह्मचर्य पालन का अर्थ है- देश से यानी खण्ड से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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