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ब्रह्मचर्य ही भारतीय-संस्कृति का आदि, अन्त और मध्य है । जिसका जीवन इस अलौकिक तेज से दीप्त है, वह इन्सान से भगवान् की ओर ही बढ़ता जाता है । पूज्य मुनिजी के आत्म-विश्वास भरे शब्दों में पढ़िए " ....!
ब्रह्मचर्य का तेज
तुम्हारे सामने एक बहुत बड़ा गहन और गम्भीर विषय उपस्थित है । जीवन का सच्चा आदर्श एक प्रकार से इसी विषय में है । यदि तुम ठोक-ठीक इस विषय को समझ सकी और आवरण में ला सकी, तो तुम नारी जीवन की उच्चतम पवित्रता को भली-भांति सुरक्षित रख सकोगी और भविष्य में एक महान् आदर्श गृह-लक्ष्मी बन सकोगी।
___ मनुष्य का जीवन अपूर्व पुण्य के उदय से प्राप्त हुआ है । स्वर्ग और मोक्ष का सच्चा द्वार यही मानद जीवन है । जो मनुष्य, मानव जीवन को सफल बनाता है, वही विश्व के रंग-मंच पर सफल अभिनेता माना जाता है । मानव जीवन का लक्ष्य है-आध्यात्मिक जीवन, सदाचार का जीवन, ब्रह्मचर्य का जीवन ।
अभी तुम विद्या पढ़ती हो, अतएव ब्रह्मचारिणी हो । विद्या ला करने के लिए ब्रह्म पर्य-ब्रत का पालन करना अत्यन्त आवश्यक है । ब्रह्मचारिणी के पवित्र कण्ठ पर सरस्वती देवी बड़े प्रेम से आकर मासन जमाती है, और ज्ञान के प्रकाश से सारा जीवन आलोकित
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