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सेवा मानव का मूल्यवान गूण है। और फिर दरिद्रनारायण की सेवा तो सर्वाधिक मूल्यवान है। जिस नारी को यह अवसर प्राप्त हो गया-समझ लो, वह योगियों की समाधि से भी बढ़कर है।
दरिद्रनारायण की सेवा
मेवा परम धर्म है । सेवा के बराबर न कोई धर्म हुआ, और न कभी होगा । जो मनुष्य रोगी की सेवा करता है, वह एक प्रकार से भगवान् की सेवा करता है।
भगवान महावीर से एक बार गौतम स्वामी ने पूछा कि --- "भगवान एक भक्त आपकी सेवा करता है और दूसरा दीन-दुखी रोगी की सेवा करता है, दोनों में कौन धन्य है।"
भगवान महावीर ने उत्तर दिया- 'गौतम । जो दीन-दुखी, रोगी की सेवा करता है, वह धन्य है। जितेन्द्र भगवान् की सेवा उनकी माज्ञाओं के पालन में है । और उनकी आज्ञा दुःखित जनता की सेवा करता है।" सेवा प्रभु की या रोगी को ?
भगवान महावीर के उक्त कथन से सिद्ध हो जाता है, कि रोगी की सेवा, भगवाव की सेवा से भी बढ़कर है। दया मनुष्य का
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