Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 77
________________ ६८ : आदर्श कन्या प्रेम का मूल्यांकन : पुत्रियो ! पशुओं की बात छोड़ो। तुम अपने घर में ही देखो तुम्हारी माता तुम से कितना प्रेम रखती है ? जब तुम बहुत छो बच्ची थी, चारपाई पर लेटी रहती थी, मालूम है तब तुम क करती थी तब तुम्हा करती थी ? कपड़ों को गन्दा कर दिया माता ही वह सब गन्दगी साफ करती थी । माता, कितने प्रेम अपने बच्चे को पालती है ? तुमसे यदि प्रेम न होता, तो क्या ? आज इतनी बड़ी होती ? नहीं, कभी नहीं । 1 अब तुम इतनी सयानी हो गयी हो और अपना भला बुरा समझने लग गई हो, तब भी वह तुमको कितना प्यार करती है ? तुम घर पर नहीं होती, तब भी वह तुम्हारे लिए खाने पीने अ पहनने आदि की चीजें किस प्रकार बचाकर रख छोड़ती है । यह प्रेम की महिमा है। पशुओं का प्रेम अज्ञान- मूलक होता है, ब मानव जाति का ज्ञान-मूलक । मनुष्यों में भी बहुत प्रेम करने वाले है । परन्तु यदि विवेक और ज्ञान का सहय लिया जाय, तो प्रेम, संसार के लिए एक अनमोल देन हो जा हां, तो प्रेम की इतनी आवश्यकता है, अतः प्रेम का मूल्यांकन करे सीखो । *** से अज्ञान म x $ 1 प्रेम से तरंगित रहो : प्रेम मानव जाति के लिए एक महान् विशिष्ट गुण है । वि पूर्वक प्रेम की उपासना करने वाला व्यक्ति कभी किसी प्रकार दुःख नहीं पा सकता । जो लड़कियाँ दूसरों को दुःखी देखकर स दुःख का अनुभव करती हैं, उनके दुःख को दूर करने के लिए झ तैयार हो जाती हैं, समाज में उनका गौरव कितना बड़ा बड़ा हो यह कुछ लिखकर बतलाने की बात नहीं है। प्रेम का प्र Jain Education International । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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