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७० : आदर्श कन्या
स्वर्ग का निर्माण करो :
ध
प्यारी पुत्रियो ? अब तुम प्रेम की महिमा समझ गई होगी पाठशाला की जितनी भी लड़कियाँ हों, उन सबके साथ प्रेम-पूर्व व्यवहार करो, तथा सबको अपनी बहन के समान समझो, पर माता पिता भाई, बहन सबके साथ प्रेम पूर्वक बर्ताव क यहाँ तक कि घर के नौकर चाकरों के सुख-दुख का भी ख्या रक्खो | मुहल्ले की लड़कियों के साथ भी खूब हिल-मिलकर रहे मुहल्ले की बड़ी-बूढ़ी स्त्रियों का भी यथायोग्य आदर-सम्मान करो सब ओर अपने प्रेम की सुगन्ध फैला दो । नारी प्रेम की साक्षात मु है घृणा और द्वेष नरक है, प्रेम और सद्व्यवहार स्वर्ग है । अपने प्रेम के बल पर घर को, मुहल्ले को, गाँव को और देश स्वर्ग बना दो, स्वर्ग ! साक्षात स्वर्ग !!
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