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शील स्वभाव : ५३ उससे इस प्रकार का प्रश्न कभी मत पूछा कि-"तुम्हारे पास क्या
या वस्त्र और गहने हैं ?" तथा अपने वस्त्र और गहनों का भी जिक्र न करो-- "मेरे पास अमुक-अमुक सुन्दर वस्त्र और मूल्यवान पहने हैं ? मैं अब और नये गहने बनवाऊँगी?' इस प्रकार अपने ड़प्पन का प्रदर्शन करने से गरीब लड़कियों के मन में बड़ी पीड़ा होती है। तना बड़ा लाभ है : जब कभी किसी बड़ी-बूढ़ो-स्त्री से मिले, तो हमेशा कोई न कोई दी, ताई, बुआ आदि उचित शब्द प्रयोग किया करो : साथ ही नी' शब्द अवश्य लगाया करा । यदि तुम ननिहाल में हो, ता वहाँ ने अपने से छोटी या बराबर की कन्याओं को बहनजी, तुम्हारा पता की वय बाली हों, तो मौसीजा, नानो की उम्र वाली हा ता नीजी, कहा करो ! वहाँ की छाटी वहू हो ता भाभीजी, और दि बड़ी हो, तो मामीजी आदि आदर सूचक शब्दां से बोला ! भार क्या धोबिन, नाइन और कहारिन आदि स भी इसी प्रकार कोई कोई उचित रिश्ता लगाकर बाला । पुरुषों ने साय भा आने यहा बाजी, चाचाजी, ताऊखी, भाईजी आदि आर ननिहाल में नानाजी, माजी, भाईजी आदि यथायाग्य दर सूचक शब्दों का प्रयोग रो। कोमल और आदर सूचक शब्दों से तुम्हारा कुछ खर्च नहीं ता, और उन लोगों का चित्त प्रपन्न हो जाता है--कितना बड़ा
के बनो, नेक बनो।
बहुत-सी लड़कियों को बात-बात पर ताने देने और दूसरों को सिने की आदत होती है। यह बहुत खराब आदत है। चाहे कैती क्षिाभ की प्रवस्था हों, मुह से कमो मो गानी नहीं निकालनी हिए और न किसी को कोसना चाहिए। यदि कभी दूसरो लड़को ज्ञानता से तुम्हें या किसी और को गाली दे तो प्रेम से समझाने का
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