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५६ : आदर्श कन्या
चुराओ । अगर अभी से तुम में यह बुरी आदत पैदा हो गई, तो इसका आगे चलकर बड़ा भयंकर परिणाम होगा । आलस्य के कारण न तुम माता के यहाँ पीहर में आदर पा सकोगी; और न सास के यहाँ ससुराल में । जब भी कभी काम पड़ेगा, तुम बड़बड़ाती झीकती झुंझलाती रहोगी और यह एक नारी के लिए बड़ी घातक बात है ।
सौभान्य से तुम्हें अगर अच्छे घर में जन्म मिल गया है, मातापिता के पास धन-सम्पत्ति खूब है, काम करने के लिए नौकरनौकरानियां हैं, परन्तु तुम गर्व में आकर अपने हाथ से काम करता फिर भी न छोड़ो । भविष्य का कुछ पता नहीं है, क्या हो ! आज धन है, कल न हो । सम्भव है, ससुराल में जहां जाओ वहां स्थिति ठीक न हो, नौकरों से काम करा कर जी चुराने की आदत डाल लैना, भविष्य में बुरे दिनों में बहुत दुःखदायक हो जाती है । बहुतसी बड़े घरों की स्त्रियाँ रात दिन पलंगों, झूलों और मसन व गद्दों पर ही पड़ी रहा करती हैं । उनका पेट बढ़ जाता है, हाजमा खराब हो जाता है, शरीर दुबल और पीला पड़ जाता है । फिर वे किसी भी परिश्रम के योग्य नहीं रहती. अतः तुम्हें च हिए तुम अलसी न बनो !
प्रेम का भोजन :
नारी अन्नपूर्णा कहलाती है। भोजन का सुचार प्रबन्ध करना उसके हाथ की बात है । बहुत-सो धनी घर की लड़कियां भोजन बनाने से जी चुराती हैं। और वे सोचती हैं--जब नोकर या नौकरानी भोजन बनाने वाले हैं, तब हम क्या चूल्हे में जलें - यह मनोवृत्ति बड़ी खराब है। भोजन बनाकर खिलाना, यह प्रत्येक नारी का कर्तव्य है । भला फिर उसमें लज्जा या आलस्य का क्य काम ? भारतीय दृष्टि से वह घर, घर ही नहीं, जिसमें भोजन,
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