Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 45
________________ ३६ : आदर्श कन्या है। भगवान् महावीर ने ऐसे ही विवेक-शील जीवन के सम्बन्ध में कहा है-"विवेकी साधक पाप के साधनों को भी धर्म के साधन बना सकता है, और अविवेकी साधक धर्म के साधनों को भी पाप के साधन बना लेता है।" विवेक का व्यावहारिक रूप : विवेक के लिए सर्ब-प्रथम जल-घर (परेंडा) पर लक्ष्य रखने की मावश्यकता है। पानी के घड़े या कलश बहुत साफ और पवित्र रहने चाहिए । पानी के कलश यदि बराबर न धोये जाएं और यों ही गन्दे पड़े रहे, तो जोवोत्पत्ति होने की सम्भावना है। घढ़ों में पानी बिना छना कभी नहीं भरना चाहिए। बिना छना पानी जन-धर्म की दृष्टि से निषिद्ध है। पानी में अनेक सूक्ष्म जन्तु होते हैं । बिना छाने पानी के उपयोग करने से सूक्ष्म जन्तुओं की हिंसा का पाप होता है। पानी छानते समय यदि कोई जीव निकले तो उनको यों ही नहीं डाल देना चाहिए, प्रत्युत जलाशय आदि के स्थान में ही डालने का विवेक रखना चाहिए। जल-घर का स्थान बिल्कुल साफ रखना चाहिए। जल-घर के पास कूड़ा कचरा और धल रहने से काई हो जाती है। जल घर के ऊपर मकड़ियों के जाले न लगने पाएं, इसके लिए पहले से ही निरन्तर सावधान रहना चाहिए । घड़ों से पानी निकालने का और पानी पोने का पात्र, अलग-अलग होना चाहिए । पानी पीने का पात्र ही घड़े में डाल देना, अविवेक का सूचक है। __ पानी छानने का वस्त्र साफ और जरा मोटा होना चाहिए। बहत से घरों में देखा गया है कि छलना बड़ा गन्दा, फटा हुआ और बहत बारीक होता है । वह छलना केवल नाम मात्र का ही छलना होता है। छलना नित्य प्रति धोकर साफ रक्खो, और उसे यों ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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