Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ वस्तु व्यय पद्धति : ४.१ बारी गृह लक्ष्मी है : मितव्ययी और परिश्रमी चतुर स्त्रियों को कभी दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ता है । वे निर्धन अवस्था में भी सुखी और भरी-पूरी दिखाई देती हैं। उन्हें धन सम्बन्धी प्राय: कोई भी आपत्ति नहीं सताती । कभी-कभी तो वे अपनी बचाई हुई सम्पत्ति से संकट काल में पति के व्यापार तक में सहायता पहुँचा देती हैं । इसी भावना को लक्ष्य में रखकर भारत के कवियों ने स्त्री को गृह-लक्ष्मी कहा है । 1 बर्च और गृह व्यवस्था : बहुत-सी लड़कियाँ बड़ी खर्चीली प्रकृति की होती हैं । वे कम खर्च करना तो जानती ही नहीं। क्या भोजन, क्या वस्त्र - सभी में खर्च का तूफान खड़ा कर देती हैं । प्रायः देखा जाता है, कि लड़कियाँ किसी भी सुन्दर वस्तु को देखते ही उसको खरीद लेना चाहती हैं । वे इस बात का ध्यान नहीं रखतीं, कि इस वक्तु की जरूरत भी है या नहीं है ? किसी चीज को खरीदने का कारण उसकी सुन्दरता नहीं है, किन्तु उसकी उपयोगिता और विशेषकर अपनी आवश्यकता है । अस्तु जिस वस्तु की जरूरत नहीं है, उसे कदापि मत खरीदो । यह फिजूल खर्च की जो आदत है, वह आगे चलकर तंग करती है । I भगवान् महावीर के समय में जैन श्रावक और श्राविकाओं की गृह-व्यवस्था की पद्धति बड़ी सुन्दर था । वे लोग खर्चीलो आदत के गुलाम नहीं थे । बहुत विचार पूर्वक गृहस्थ-जोवन चलाते थे । वे अपने धन के वार भाग करते थे, इसमें से एक भाग कोष में जमा करके रखा जाता था, ताकि किसी समय पर काम आ सके । तुम भा आमदनी का चोया भाग अलग जमा रक्खा, उस अपन नित्यत्रति के खच में मत लाओ, क्योकि कभी-कभी घर में अचानक हा ऐसा काम आ जाता है, जिससे पैसा खर्च करने का अत्यधिक आवश्यकता हाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120