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४४ : आदर्श कन्या
पिघल जाऊगी ।” पुत्रियों ! तुम भी किसी से कम नहीं हो । "भी संकटों से जूझ कर उन पर विजय प्राप्त कर सकती हो। जि जाति में लक्ष्मी और दुर्गा जैसी नारियाँ हुई हैं, वह जाति हीन कि प्रकार हो सकती है ?" अतः प्रत्येक नारी में सीता का बीज है, अंकुरित करने की आवश्यकता है ।
हीन भावना पाप है :
खेद है, कि नारी जाति ने अपना आत्म गौरव भुला दिया है। सदियों से उसे यह सिखाया गया है, कि "नारी तो कुछ कर ही नह सकती ।' तुम्हें यह गलत संस्कार अपने मन से निकाल देना चाहिए जैन-धर्म नारी जाति के महत्व को बहुत ऊँचा मानता है। वह कहत है कि - " पुरुष के बराबर ही स्त्री जाति की भी प्रतिष्ठा है। गृहस्थ धर्म की गाड़ी के दोनों पहियों में किसका महत्व कम है, औ किसका अधिक है ? स्त्री भी पुरुष के समान ही केवल ज्ञान पाक सर्वज्ञ पद पा सकती है । मोक्ष में पहुँचकर परमात्मा भी हो सकती है ? " तुम जैन हो । बस, तुम्हें तो अपने आपको हीन समझना ह न चाहिए। वह जैन ही क्या, जो उत्साह के साथ विजय पथ प अग्रसर न हो अपने मन में हीनभाव लाना पाप है । हीनता नहीं वीरता धर्म है ।
जिस मनुष्य ने अपने आपको गिरा लिया है, जिसने यह सम लिया है कि -- मैं तुच्छ हूँ, मेरा क्या हो सकता है ? उसने स्व ही अपने अनन्त आत्म बल की जानबूझ कर हत्या करली है । या संसार का अटल नियम है, कि जिस मनुष्य का मन सब ओर दीन-हीन बन चुका है, वह धन, जन, विद्या आदि में चाहे कितना क्यों न बढ़ा-चढ़ा हो, कभी कोई साहसपूर्ण व कल्याणकारी का नहीं कर सकता !
जो चाहो सो बनो :
जब तक तुम अपने दोनों पैरों को स्थिर रखती हो, तभी व
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