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५० : आदर्श कन्या
करने वाली आदत है। जो काम मनोयोग पूर्वक किया जाएगा, वहाँ यह झंझट कदापि पैदा नहीं होगा। उद्बोधन :
अव्यवस्था हटाओ। प्रत्येक कार्य में व्यवस्था और सुरुचि का परिचय दो। ये बातें ऊपर से साधारण-सी दीखती हैं, परन्तु भविष्य में ये ही जीवन निर्माण किया करती हैं। देखना, तुम्हारी अव्यवस्थित बुद्धि पर किसी को यह कहने का अवसर न मिले कि-"थाली खो जाने पर घड़े में ढूंढ़ी जाती है ।" कम-से-कम अपने घर की चोजों के लिए तो तुम्हें सर्वज्ञ होना चाहिए। तुम सरस्वती हो अतः इतनी भुलक्कड़ और अव्यवस्थित मत बनो !
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