Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 52
________________ 11 प्रत्येक नारी में सीता, द्रोपदी तथा लक्ष्मी और दुर्गा का प्रतिबिम्ब है, अपने आत्म गौरव को समझने के लिए यह निबन्ध पढ़िए........! आत्म-गौरव का भाव मनुष्य मात्र में आत्म-गौरव का भाव होना अतीव आवश्यक है। जिस मनुष्य में आत्म-गौरव नहीं, वह मनुष्य, मनुष्य नहीं पशु है। मात्म-गौरव का अर्थ है-"अपने प्रति अपना आदर ।" विशेष व्याख्या में उतरा जाय, तो कहा जा सकता है कि अपने को तुच्छ मौर हीन न समझना, आत्म-गौरव है।" पुत्रियो ! तुम स्वप्न में भी अपना आत्म-गौरव मत भूलो, तुम कभी भी अपने को तुच्छ न समझो । तम आत्मा हो, तुम में अनन्त शक्ति छुपी हुई है । तुम भूमण्डल पर किस बात में कम हो? तुम्हारे अन्दर अपना और दूसरों का कल्याण करने वाली महती शक्ति निवास करती है। प्रत्येक नारी सीता है : - तुम सीता और द्रौपदी की बहिन हो । पता है, आज संसार में सीता और द्रौपदी का क्यों महत्व है ? हजारों लोग प्रतिदिन इनके माम की माला जपते हैं । सीता की महत्ता तो इतनी बढ़-चढ़ कर है कि, राम से पहले सीता का नाम लिया जाता है । तुमने सुना होगा, लोग 'सीता-राम' कहते हैं, न कि "राम-सीता' । सीता को इतना महत्व क्यों प्राप्त हुआ? इसलिए कि वह अपना आत्म गौरव नहीं भूली थी । वन में जाते समय उसे कितना डराया गया? परन्तु वह संकट सहने के लिए प्रसन्न मन से तैयार हो गई। उसने कहा-"जब पतिदेव संकट सहन कर सकेंगे, तो मैं क्यों न सहन कर सकेंगी ? मैं क्या मोम की पुतली हूं, जो धूप लगते ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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