Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 54
________________ आत्म-गौरव का भाव : ४५ बड़ा रह सकती हो । यदि पैरों को थर थरा दो, तो शीघ्र ही गिर कर जमीन पर आ जाओगी। इसी तरह, जिसने अपने आपको हल्का समझ लिया है, उसकी सब क्रियायें हल्की ही होती हैं। और जो यह समझती हैं, कि हम सब कुछ हैं हम बहुत कुछ कर सकती है. उसकी सब क्रियाएं पूर्णतया सफल होती हैं । अपने को हीन समझने वाला हीन हो जाता है और अपने आपको महान समझने वाला महान् । मनुष्य का निर्माण उसके अपने विचारों के अनुसार ही होता है, अतः वह जो चाहे जैसा चाहे बन सकता है। हम सब कुछ हैं : इसका यह अभिप्राय नहीं है, कि तुम अहंकार करने लगो, अपने को रानी महारानी मान बैठो । बल्कि इसका अर्थ यह है, कि तुम अपने को कठिन से कठिन कार्य को कर डालने की शक्ति रखने वाली आत्मा समझो। तुम्हारा हृदय उपजाऊ भूमि की तरह है, उस पर सदा गौरव और उत्साह के फलप्रद बीज बोओ। विद्या लाभ करने में अपनी बहुत ऊंची तथा अग्रशील दृष्टि रक्खो । अच्छा काम चाहे कितना ही कठिन क्यों न हो, उसको पूरा करने का अपने मन में अदम्य साहस रक्खो। तुम छोटी हो तो क्या है ? तुम्हारा लक्ष्य और तदनुकूल साहस, छोटा नहीं होना चाहिए । इस संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं, वे पहले हम तुम जैसे साधारण मनुष्य ही तो थे । परन्तु आत्म बल को बढ़ाने के कारण ही वे संसार में अजर अमर पद प्राप्त कर महान् हो गए हैं। तुम सब कुछ हो। पारी पुत्रियो ! तुम भी सब कुछ हो, जरा अपने आत्म-बलः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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