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विवेक का दीपक : ३७ इधर-उधर न पड़ा रहने दो, एक निश्चित स्थान में रख छोड़ो। पानी छानने के सम्बन्ध में छलने का परिणाम बताते हुए एक धार्मिक आचार्य कहते हैं "कम-से-कम तीस अंगुल लम्बा और तीस अंगुल चौड़ा वस्त्र छानने के लिए उपयुक्त होता है।" पानी ही जीवन है :
पानी, प्रकृति की अनमोल वस्तु है। पानी, ससार का जीवन है। गर्मी के दिनों में तुम्हें जब कभी नल से, अव्यवस्था के कारण पानी प्राप्त नहीं होता है, तो कितनो बेचैनी होती है। प्रति वर्ष हजारों जीवन तो, पानी के अभाव में नष्ट हो जाते हैं । अतएव पानी के उपयोग में लापरवाही मत रक्खो पानी को व्यर्थ ही नालो में मत डालो, और न इधर-उधर फर्श पर ही फेंको। ऐसा करने से पानी के जीवों की हिंसा तो होती ही है, और उधर घर में सील बढ़ जाने से अस्वच्छता भी बढ़ जाता है। विवेक का प्रथम चरण :
घर के दरवाजे के आगे, गन्दा मत रखो । बहुत से घर ऐसे देखे हैं जिनके दरवाजे पर कुरडी-की-सी गन्दगी होतो है - जूठन, मल-मूत्र, कूड़ा-करकट-सब दरवाजे पर जमा कर दिया जाता है। यह कितना भद्दा और अविवेक का काम है ! इससे घर के आगे दुर्गन्ध रहती है, आने-जाने वाले लाग घृणा करते है और जीवोत्पत्ति होने के कारण जीवों की जो व्यर्थ हिंसा होती है; वह अलग । अस्तु, किसी एकान्त स्थान में ही कूड़ा वगैरह यतना से डालने का ध्यान रखना चाहिए। विवेक का द्वितीय चरण :
भोजन बनाते समय भी विवेक की बड़ी आवश्यकता है । आटा बहुत दिनों का नहीं होना चाहिए । आटा बहुत दिन रखने से सड़
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