________________
नाना प्रकार की अविद्याओं और संकल्प-विकल्पों के अन्धकार म पड़ा मनुष्य, अपने पथ से भूल-भटक जाता है। इस भूल-भुलैया से बचन के लिए मनुष्य को प्रकाश चाहिए। वह "विवेक के दीपक' में है। यह दीपक जीवन के अंधेरे में, घने अंधेरे में, और झुटपुटे में सब जगह काम देगा।
विवेक का दीपक
जैन-धर्म में विवेक को बहुत बड़ा महत्व दिया गया है। विवेक धर्म का प्राण है । जहाँ विवेक है, वहाँ धर्म है । जहाँ विवेक नहीं, वहाँ धर्म नहीं । शास्त्रों में विवेक शून्य मनुष्य को पशु के समान बतलाया है । न वह अहिंसा पाल' सकता है, और न सत्य की ही आराधना कर सकता है, तभी तो भगवान् महावीर ने आचारांगसूत्र में कहा है-"धर्म विवेक में है।" पाप से बचने की कला : .. पुत्रियो ? तुम गृहस्थ जीवन में सक्रिय भाग लेने वाली नारी हो। तुम्हें अधिक से अधिक विवेक और विचार से काम लेना चाहिए। घर का प्रत्येक काम विवेक और विचार से करो । विवेक, पाप से बचने की एक महान् कला है। किसी भी काम में प्रमोद और मसावधानी रखना अविवेक का सूचक है। विवेक रखने वालो नारी महस्थी के धन्धों में भी विशेष हिंसा से बच सकती है और कभीकमो तो हिंसा के स्थान में अहिंसा का मार्ग भी खाज निकालती
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org