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आदर्श नारी कौन ? ३३
दर्शन देती हो, धीरता और कोमलता का यह अभिनय संगम, जहाँ हो --वही आदर्श नारी है
पाखंड के भ्रम में फंसकर, जो देवी-देवताओं के, नाम पर, जहाँ-तहाँ ईंट-पत्थर, पूजती न फिरतो हो, जिसके एकमात्र, श्री वीतराग अरिहन्त देव ही सत्य भगवान हो, आराध्य देव हो, जिसको अपने सत्कर्म,
और सदाचार पर, अखण्ड विश्वास हो, -वही आदर्श नारी है !
जब बोले, बहुत थोड़ा बोले परन्तु उसी में, सरसअमृत बरसा दे ! जिसकी वाणी के, अक्षर-अमर में, प्रेम और स्नेह का सागर नमडे, क्या बूढ़े, क्या बच्चे, क्या छोटे, क्या बड़े, क्या अपने, क्या पराये, जो सब पर, अपने मधुर परिचय को, अखण्ड अमिट, छाप डाल दे, -वही आदर्श नारी है।
जीवन और मरण, जिसके लिए खेल हो, स्वप्न में भी जिसक, भय का स्पर्श न हो, स्वर्ग का इन्द्र भो, जिसको अपने धर्म से, विवलित न कर सके, तथा
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