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अपरिग्रह मावश्यक क्यों : ३१ सत्याग्रह में भाग लिया था । तुम देखती हो-उनकी कितनी प्रतिष्ठा हुई है । जैन धर्म तो सोधे-सादे वस्त्रों के परिधान को ही कर्मठ जीवन का पवित्र चिन्ह समझता है । सुख त्याग में है :
अपरिग्रह का सच्चा मादर्श तो जीवन की प्रत्येक सासारिक आवश्यकताओं में अपने को सामित करना है । क्या गहने, क्या धन, क्या मकान, क्या नौकर-चाकर, क्या ताँगा-मोटर, क्या वस्त्र, सर्वत्र बहुत कम इच्छाएं रखना । बिल्कुल सादगो के साथ जीवन बिताना ही अपरिग्रहवाद का उच्च आदर्श है । जैन धर्म का यह अपरिग्रहवाद हो तो संसार में स्थायी शान्ति का शिलान्यास करने वाला है। जितनो इच्छाएं कम होंगी, उतनी हा मांग कम होंगी। जितनी माँगें कम होंगी, उतनी ही उनकी पूर्ति के लिए चालबाजियाँ कम हांगो, आर जितको चालबाजियां कम हांगी, जोवन उतना ही सरस, सरल, एक-दूसरे का विश्वासी होगा और जहाँ ऐसा जीवन होगा, वहाँ मानव-एकता अपने आप विस्तृत रूप धारण कर लेगी। जैन-धर्म का यह नारा कभी असत्य नहीं हो सकता. कि "सुख त्याग में है।"
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