Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 39
________________ ३० : आदर्श कन्या उतनी ही तुम सुखी रहोगी। बहुत से घरों में सुन्दर ओर मूल्यवान वस्त्रों के लिए स्त्रियां कलह मचाया करती हैं। वे सदा अपने घर के लोगों की तड़क-भड़कदार रेशमा और चटकीले वस्त्र। को खरीदने के लिए मजबूर किया करती हैं। न स्वयं चैन से रहती हैं न दूसरों को ही चैन लेने देतो हैं तो फिर भला, कलह के सिवाय और क्या होना है ? ___ तुम पढ़ी-लिखो विदुषी हो तुम्हें बहुत कीमती और तड़क 'भड़कदार कपड़ो के फेर में नहीं पड़ना चाहिए। क्या बनारसी साड़ी के बिना गुजारा नहीं हो सकता? क्या पापलीन ही तुम्हें सुन्दा बनाएगी? क्या नाइलोन और टेरालीन ही तुम्हारी सुन्दरता बढ़ा एगी। क्या रेशमी वस्त्रों के बिना तुम जनता की आँखों में ही समझी जाओगा? यह बहुत हत्का ख्याल है। इसे जितना भी शोघ्रत से त्याग सको, त्याग दो । मनुष्य का वास्तविक गौरव उसके अक गणों पर है । यदि गुण है, तो सादे खद्दर के वस्त्र पहन कर मनुष्य उचित आदर पा सकता है और यदि गुण नहीं है, तो रेशा वस्त्र पहनकर कपड़ों की गुड़ियाँ मात्र ही बन जाआगो, और क्या बल्कि कभी-कभी तो यह हँसा ओर मजाक का कारण बन जाती है वस्त्र तो केवल शरीर को सदों-गमों से बचाने के लिए तथा लज निवारण के लिए पहने जाते हैं, न कि दूसरों का अपनी तड़क-भड़ दिखाने के लिए। कर्मठ जोवन का चिन्ह : वस्त्र मोटे और खद्दर के ही क्यों न हों परन्तु वे होने चाहिए साफ और सुथरे । सौन्दर्य कोमती वस्त्रों में नहीं है वह है, वर की स्वच्छता और पवित्रता में । भारतीय स्वतन्त्रता के युद्ध हजारों ऊँचे घरों की देवियों ने साधारण खद्दर के वस्त्र पहन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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