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कलह दूषण है : २५ है, कि झगड़ा करके हो हम अपना गौरव और प्रतिष्ठा कायम रख सकेंगी, परन्तु यह उनकी भयंकर भूल' है । लोग बुद्धि-हीन नहीं हैं, जो वास्तविकता को न समझ सकें । यदि वस्तुतः तुमने कोई दोष किया ही नहीं है तो फिर क्यों झगड़ती हो ? सत्य अवश्य प्रकट होकर रहेगा, और यदि तुमने बास्तव में कोई दोष किया ही है, तब भी झगड़ने से क्या लाभ ? झगड़ने से तुम सच्ची कभी नहीं हो सकती, प्रत्युत कलह करने के कारण घर वालों की आँखों से और अधिक गिर जाओगी। कलह करने से किसी की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती । यह निश्चित समझो, को शान्ति से मनुष्य को जितनी प्रतिष्ठा होती है, उतनी और किसी से नहीं । यश फैलाओ:
अधिक क्या कहा जाए। सत्य का धर्म थोड़े से शब्दों में ही सीख लेना चाहिए । भले ही थोड़ी बहुत हानि हो, उसको सहले परन्तु उसके लिए झगड़ा कभी भूल कर भो मत कर। । कलह से तुम्हारा प्रेम-पूण स्वर्गीय संसार नष्ट हा जाएगा । शान्ति से कलह पर विजय प्राप्त करो। शान्त और सुशील नारी ही ससार में सुयश प्राप्त करती है। नारा लक्ष्मी का अवतार कहलाती है। वह नहर में, ससुराल में, ननिहाल में और दूसरे रिश्तेदारों के यहाँ वहाँ-जहाँ कहीं भी जाएगी, वहाँ प्रेम और शान्ति की सुगन्ध महकाती रहेगी।
प्रेम से तुम्हारा जीवन सुवासित हो जाएगा, तो यश की सुगन्ध अपने आप विकीर्ण होगी। प्रेम से यश बढ़ता है। ज्योंज्यों प्रेम बढ़ता है, यश के क्षेत्र में मनुष्य अधिकाधिक गहरा उतरता है।
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