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बिना जाने विना समझे ही कुछ लोगों ने धारणा बना ली है, कि जैन धर्म गन्दा रहना सिखाता है। यह लेख इसका सम्यक् स्पष्टीकरण कर यह कहता है-अस्वच्छता पाप है, और शारीरिक व मानसिक दोनों ही अस्वच्छता से बचना चाहिए । यह जैन-धर्म का मूल । स्वर है।
अस्वच्छता पाप है
'अस्वच्छता' का अर्थ गन्दगी है । जो मनुष्य अस्वच्छ रहता है, गन्दा रहता है, वह भयंकर भूल करता है। अस्वच्छ रहने से मनुष्य के स्वास्थ्य का भी नाश होता है, और दूसरे साथियों के स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचती है। जिस मनुष्य का स्वास्थ्य नष्ट हो गया, समझ लो, वह एक प्रकार से धर्म से भी भ्रष्ट हो गया। इसलिए जैन धर्म में अस्वच्छता को एक दुर्गुण व पाप माना गया है। बताइए, रोगी मनुष्य क्या धर्म कर सकता है ? अस्वच्छता से वचिए :
अस्वच्छता दो प्रकार की होती है -मानसिक और शारीरिक अपने मन तथा आत्मा को विकारों से अशुद्ध रखना, मानसिक अस्वच्छता है और शरीर तथा आस-पास की वस्तुओं को गंदी रखना, शारीरिक अस्वच्छता है । मनुष्य को दोनों ही अस्वच्छताओं से बचकर रहना चाहिए ।
मानसिक अस्वच्छता को दूर करने के लिए निम्न बातों पर खास तौर से लक्ष्य रखना चाहिए
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