Book Title: Adarsh Kanya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 31
________________ ०२ : आदर्श कन्या ही उत्तेजना के वातावरण में क्यों न हो, परन्तु अपनी शान्ति नष्ट न होने दो ! यदि तुमने जरा भी अपने आपको शान्ति से अलग किया, तो देख लेना, तुम्हारे परिवार में कलह आसन जमा लेगी और आपस में प्रेम रूपी कल्प वृक्ष को क्षण भर में जलाकर राख कर डालेगी । कब तक कोई आग को ढँककर रख सकता है ? आग को कितना ही छिपाओ, फिर भी उसकी चमक तो बाहर निकलेगी ही टीक इसी प्रकार हृदय की दुर्भावनाएँ भी कभी छिप नहीं सकती | आसपास के कारणों को लेकर हृदय में जो अनेक प्रकार की दुर्भावनाएँ इकट्ठी हो जाती हैं, वे ही बढ़कर कलह का रूप धारण करती हैं और एक हरे भरे तथा सुखी परिवार को नष्ट-भ्रष्ट कर डालती हैं । बस, अपने हृदय को साफ रखो, हृदय में किसी की ओर से मैल न जमने दो, फिर तुम्हें कलह नष्ट नहीं कर सकेगा । शुद्ध हृदय में कलह उत्पन्न ही नहीं हो पाता । हृदय को शुद्ध रखने के लिए शान्ति आवश्यक है । कलह के कारण सारा परिवार डाँवाडोल हो जाता है और प्रत्येक व्यक्ति के मुख पर उदासीनता और कठोरता छा जाती है घर में से प्रसन्नता और हँसी-खुशी एकदम गायब हो जाती है । जो स्त्री कलह करती है, उससे कोई भी प्रसन्न नहीं रहता । सब लोग उससे बच कर रहते हैं, और तो क्या उससे कोई बोलना तक भी नहीं चाहता । बच्चे भी उससे डरकर रहते हैं । वह जिधर भी चली जाती है, चण्डी का भयानक रूप धारण कर लेती हैं, और शेरनी की तरह बबकारती है, घर भर में एक तहलका मचा देती है । पुत्रियो ! तुम्हें आगे चलकर घर की रानी बनना है । इसलिए अभी से अपने आपको खूब अच्छी तरह संभाल कर रक्खो । आपस के कलह से सर्वथा दूर रहो। माता, पिता, भाई, बहिन जो आज्ञा दें, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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