________________
अचलगच्छ का इतिहास
अभिलेखीयसाक्ष्य - श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विभिन्न गच्छों से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्य मुख्य रूप से दो प्रकार के हैं - १. प्रतिमालेख, २. शिलालेख ।
४
धातु या पाषाण की अनेक जिनप्रतिमाओं के पृष्ठ भाग या आसानों पर लेख उत्कीर्ण होते हैं। इसी प्रकार विभिन्न तीर्थस्थलों पर निर्मित जिनालयों से अनेक शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं। इन लेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक या प्रतिमा की प्रतिष्ठा हेतु प्रेरणा देने वाले मुनि का नाम होता है तो किन्हीं - किन्हीं लेखों में उनके पूर्ववर्ती दो-चार मुनिजनों के भी नाम मिल जाते हैं । किन्ही - किन्ही लेखों में तत्कालीन शासक का भी नाम मिल जाता है। इतिहास लेखन में उक्त साक्ष्यों का बड़ा महत्त्व है ।
शिलालेखों में सामान्य रूप से जिनालयों के निर्माण, पुननिर्माण, जीर्णोद्धार आदि कराने वाले श्रावक का नाम, उसके कुटुम्ब एवं ज्ञाति आदि का परिचय, प्रेरणा देने वाले मुनिराज का नाम, उनके गच्छ का नाम, उनकी गुरु- परम्परा में हुए पूर्ववर्ती दो-चार मुनिजनों का नाम, शासक का नाम, तिथि आदि का सविस्तार परिचय दिया हुआ होता है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध अभिलेखों लेखों के विभिन्न संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनका विवरण इस प्रकार है
-
जैनलेखसंग्रह, भाग १ - ३; सम्पा०१९२७, १९२९ ई० ।
प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २; सम्पा०सभा, भावनगर १९२१ ई० ।
मुनि जिनविजय, जैन आत्मानन्द
- मुनि विद्याविजय,
प्राचीनलेखसंग्रह, संग्रा० - आचार्य विजयधर्मसूरि, सम्पा० - यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९२९ ई० । जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १ - २, सम्पा० – आचार्य बुद्धिसागरसूरि, श्री अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मंडल, पादरा १९२४ ई० ।
-
अर्बुदप्राचीन जैनलेखसंदोह, ( आबू - भाग २) सम्पा०-- मुनि जयन्तविजय, विजयधर्मसूरि ज्ञान मंदिर, उज्जैन वि०सं० १९९४।
अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह (आबू - भाग ५), सम्पा०जयन्तविजय, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर वि०सं० २००५ ।
मुनि
पूरनचन्द नाहर, कलकत्ता १९१८,
जैनधातुप्रतिमालेख, सम्पा०सूरत १९५० ई० ।
प्रतिष्ठालेखसंग्रह, सम्पा०१९५३ ई० ।
Jain Education International
-
- मुनि कान्तिसागर; श्री जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार,
-
महोपाध्याय विनयसागर, सुमति सदन,
For Private & Personal Use Only
कोटा
www.jainelibrary.org